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________________ ५८ ] [श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद से भी अधिक धवल तथा शुभ्र हैं, वैडूर्यमणिमय जिसके दण्ड हैं ऐसे मनोज्ञ तीन छत्र भगवान के ऊपर सुशोभित होते रहे है। (६) दिव्य ध्वनि --'पानी से भरे हुए बादलों की गर्जना के समान, समस्त दिशाओं के समूह में व्याप्त, कानों को तथा मन को अत्यन्त सुख देने वाली ऐसी भगवान की दिव्यध्वनि एक योजन तक पहुँचती है । (७) सिंहासन-जिनकी किरणों चारों ओर फैल रही हैं ऐसे रत्नों की किरणों से इन्द्र धनुष के समान छटा को धारण करने वाला ऐसा अनुपम स्फटिक पाषाण का बनाया हुआ अत्यन्त उत्कृष्ट सिंहासन स्फटिकमय सिंहों के द्वारा धारण किया जाता है। उस सिंहासन से चार अंगुल ऊपर अधर आकाश में ही भगबान विराजते हैं। (८) भगवान के पीछे भामण्डल का होना----इस भामण्डल में भव्यजीव अपने ७ भव देखते हैं तथा सूर्यचन्द्र से भी अधिक दीप्ति को धारण करने वाला परम सुखकर होता है। इस प्रकार ये ८ प्रातिहार्यों से सहित भगबान होते हैं। अब अनन्त चतुष्टय को बताते हैं अनन्त ज्ञान--लोकालोक के समस्त पदार्थ अनन्त पर्यायों सहित जिनके ज्ञान में स्पष्ट एक साथ झलकते हैं ऐसे केवल ज्ञान के धारी श्री अरहन्त देव होते हैं । ज्ञानावरण कर्म का क्षय होने से श्री अरहन्तदेव को लोकालोक के सभी पदार्थों को एक साथ जानने की क्षमता रखने बाला केबलज्ञान प्रकट हो जाता है। अनन्त दर्शन–दर्शनावरण कर्म का क्षय हो जाने से श्री अरहन्त देव को लोकालोक का युगपत् अवलोकन .. सामान्य प्रतिभास रूप दर्शन होता है । अनन्त सुख-मोहनीय कर्म का क्षय हो जाने से जिनके निराकुल मुख प्रगट हो गया है ऐसे अनन्त सुख के धारी श्री अरहन्तदेव होते हैं । अनन्तवीर्य—वीर्यान्तराय कर्म का क्षय हो जाने से जिनके आत्मस्थ अनन्त धोर्य गुण प्रकट हो गया है ऐसे अनन्त वीर्य के धारी श्री अरहन्त देव होते हैं । इस प्रकार ४६ मूलगुणों के कथन पूर्वक श्रेणिक महाराज श्री वीर प्रभु की अनेक प्रकार स्तुति करते हैं । और भी स्तुति रूप बचन कहते हैं । जयत्वं श्री जगदेव जय चिन्तामणे प्रभो। जय त्वं परमानन्दकारणं भव्यदेहिनाम् ॥१२२।। अन्वयार्थ (श्री जगदेव) हे विश्ववंद्य (त्य) आप (जय) जयशील होइये (चिन्तामणे प्रभो) हे चिन्तामणि समान फलप्रदाता भगवन आप (जय) जयशील होवें
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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