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________________ श्रीपाल. चरित्र प्रथम परिच्छेद] हैं, सात पीछे होते हैं । इस प्रकार १५ कमल होते हैं किन्तु समस्त कमलों की संख्या २२५ होती हैं जो इस प्रकार हैं -एक कमल भगवान के चरणों के नीचे रहता है । सात-सात कमल आठों दिशाओं में होते हैं तथा उन आठ दिशाओं के मध्यवर्ती आट अन्तरालों में भी सातसात कमल होते हैं इस प्रकार एक सौ तेरह कमल हुए पुन: उपयुक्त १६ पंक्तियों के मध्यवर्ती अन्तरालों में भी सात-सात कमलों की पंक्ति होती है इस प्रकार ११२ कमल ये और हुए । सब मिलाकर २२५ कमल हुए। (११) पृथ्वी फलों के भार से न म्रित और शालि आदि समस्त धान्य के निमित्त से रोमाञ्चिन हुई के समान दिखती है । (१२) आकाश स्वच्छ वा निर्मल हो जाता है, दशों दिशाएँ धूलि और अन्धकार से रहित हो जाती हैं। (१३) ज्योतिषि देव, व्यन्तर देव, कल्पवासी देव और भवनबासी देव इन्द्र की आज्ञा से चारो ओर परस्पर 'आओ आओ” इस प्रकार शोघ्रता से बुलाते हैं। (१४) जो देदीप्यमान एक हजार आरों से शोभित हैं और चारों और अत्यन्त निर्मल महारत्नों को किरणों के समूह से शोभायमान हैं जो अपनी कान्ति से सूर्य की कान्ति को भी हँसता है—तिरस्कृत करता है ऐसा धर्मचक्र भगवान के विहार करते समय सबके आगे आगे चलता है । इस प्रकार ये १४ अतिशय हुए। प्रातिहार्य आठ होते हैं—(१) अशोक वृक्ष का होना—जिसका विस्तार वैड्र्यमणि को कान्ति के समान अत्यन्त सुन्दर है जिसकी शाखायें नवीन अंकुरों से और कोमल पत्तों से सुशोभित हैं, उत्तम मरकतमणि के समान जिसके हरे पत्त है । पत्तों के अधिक होने से जिसकी छाया बहुत धनी हैं ऐसी अनेक प्रकार की शोभा से शोभित श्री जिनेन्द्रदेव के पास होने वाला शोभनीय अशोक वृक्ष होता है। (२) पुष्पवृष्टि का होना–जिसके चारों ओर मदोन्मत भ्रमर फिर रहे हैं ऐसे मन्दार, कुन्द, रात्रि विकासी कमल, नीलकमल, मवेतकमल, मालती बकुल आदि मिले हुए पुष्पों की आकाश से सदा वृष्टि होती रहती है। (३) चामरों का हुलना–६४ चमरों को यक्ष जाति के देव, भगवान के ऊपर बोलते हैं। (४) दुन्दुभि बाजों का वजना–प्रबल बायु के बात से शोभित हुए समुद्र के गम्भीर' शब्द के समान जिनके मनोहर शब्द हो रहे हैं ऐसे वीणा, बंशी आदि सुन्दर बाजों के साथ दु'दुभि बाजे ताल के साथ मनोहर ध्वनि से बजते हैं। (५) तीन छत्र का होना–अनेक मोतियों की झालरें जिसमें लग रही हैं जो चन्द्रमा
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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