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श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद ]
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अन्वयार्थ - - (इति) ऐसा ( श्रवरण मात्रेण ) सुनते ही ( मगधेश्वर ) मगधाधिपति ( सिहासनाम् समुत्थाय ) सिंहासन से उटकर ( सप्तपदानि ) सात पद (गत्वा) आगे जाकर ( हर्ष निर्भर: ) हर्ष से भरे हुए (वीर नाथ ! ) हे वीर प्रभु ! ( त्वं जय ) तुम जयवन्त होश्रो ( इति संबन् ) ऐसा बोलते हुए (तस्मै ) उस वनपाल को ( महादानं दत्वा ) उत्तम वस्तुओं को देकर (तां दिशं ) उस दिशा की तरफ ( सम्प्रणम्य ) प्रणाम कर ।
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( सत्वरं ) शीघ्र ( आनन्ददायिनी भेरी) आनन्ददायिनी भेरी को ( दापयामास ) (जेना उसके स्वर से ( भव्यौघाः ) भव्य जीवों के समूह ( प्रोल्लसन्मुख पंकजाः) प्रफुल्लित मुख कमल वाले हो गये ।
भावार्थ- वनपाल की उक्त प्रमोदकारी बातों को सुनकर श्रेणिक महाराज को निश्चय हो गया कि अन्तिम तीर्थंकर श्री १००८ महावीर भगवान का समवशरण आया हुआ है । जिन भक्त शिरोमणि उस श्रेणिक महाराज के प्रानन्द की सीमा न रही। हर्ष से भरे वे जय जयकार करने लगे-- हे वीर प्रभु ! आप जयवन्त होवें अर्थात् आपके हितकर पवित्र शासन से यह भूमि चिरकाल तक शोभित रहे, आपकी पवित्र वाणी रूपी अमृत का पानकर भव्यजीव प्रक्षय अविनाशी निराकुल सुख को प्राप्त करें। मिथ्यात्व और अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश होवे, रत्नत्रय की दिव्य ज्योति से यह मगध प्रदेश दीप्तिमान होवे । इत्यादि रूप से स्तवन करते हुए अन्तः स्थल में छिपी हुई जिनभक्ति को वचन स्तुति द्वारा परोक्ष रूप से प्रकट करते हुए अति श्रानन्द को प्राप्त हुए तथा शीघ्र ही ग्रानन्द भेरी बजवा दी ।
उस ग्रानन्द भेरी की ध्वनि को सुनकर नगर निवासी भी परमानन्द को प्राप्त हुए । श्री १००८ महावीर प्रभु के दर्शन के लिये समस्त प्रजाजनों के साथ चलने का निश्चय करने वाले श्रेणिक महाराज ने क्या क्या तैयारियां की सो बताते हैं ॥ ६८ ॥
वन्दितु श्रीमहावीरं केवलज्ञान भास्करम् । विशिष्टाष्ट महाद्रथ्यैः सामग्रीं चक्रिरे मुदा NEE
अन्वयार्थ (केवलज्ञान भास्करम ) केवल ज्ञान दिवाकर ( श्री महावीरं वन्दितुं ) श्री महावीर प्रभु की वन्दना के लिये [समस्त नर नारियों ने ] ( विशिष्ट प्रष्ट महाद्रव्यैः ) विशिष्ट दिव्य जल, चन्दन, अक्षत एवं सुगन्धित नाना प्रकार के पुष्प, विविध प्रकार के सुस्वाद्य मिष्टान पकवानों का नैवेद्य, रत्नमव दीप, सुगन्धित धूप, सुपक्व मधुर उत्तमोत्तम फल और अध्यादि से शोभायमान ऐसी (सामग्री) सामग्री को ( मुदा) हर्ष के साथ ( चक्रिरे ) तैयार करली |
भावार्थ - लोक लोक के समस्त पदार्थों को युगपत् जानने वाले केवल ज्ञान के धारी श्री महावीर भगवान की बन्दना के लिये नगर निवासी समस्त नरनारियों ने श्रेष्ठ, सुगन्धित, दिव्य मनोज्ञ अष्टद्रव्य जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल और अयं तैयार कर लिये ॥६॥