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[श्रीपाल चरित्र दराम परिच्छेद भावार्थ-जिस प्रकार संसार में चिन्तामणि रत्न पत्र होना दुर्लभ है। उसी प्रकार संसार में परिभ्रमण करते हुए मनुष्यों को रत्नत्रयरूप बोधि की प्राप्ति महान कठिन है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की प्राप्ति का नाम चोधि है । यह सहसा जीव को प्राप्त नहीं होती। महान प्रयत्नों से और अत्यन्त कठिनता से प्राप्त होती है । अत:भव्यात्माओं को निरन्तर यथाशक्ति यथानुरूप उसे पाने का प्रयत्न करना चाहिए ।।७६.८०।।
आगे अन्तिम धर्मभावना का विवेचन करते हुए प्राचार्य श्री कहते हैं कि बराग्य जाग्रत श्रीपाल विचारते हैं
धर्मश्चापि जिनेन्द्राणां दुर्लभो भुवनत्रये । क्षमावि दशधा नित्यं सुरासुर समर्चितः ॥१॥ योददात्युत्तमं सौख्य लोकदय हितंकरः। सोऽत्र भव्यैस्समाराध्यो भाविमुक्तिबधूवरैः ॥८२।। । रत्नत्रय भवेद्धर्मो धर्मोऽपि दशधा स्मृताः ।
| धर्मो वस्तुस्वभावश्च जीवानां रक्षणं च सः ।।३।।
अन्वयार्थ --- (नित्यम् ) निरन्तर (सुरासुरसमचितः) सुर और असुरों से पूज्य (दशधाः) दशप्रकार का (क्षमादि) उत्तम क्षमादि रूप (जिनेन्द्राणाम्) जिनेन्द्र कथित (धर्म:) धर्म (अपि) भी (भुवन्त्रये) तीनों लोकों में (दुर्लभ:) दुर्लभ है (यः ) जो धर्म (लोकद्वय हितकर:) उभय लोक में हितकारी (उत्तमम) सर्वोत्तम (सौख्यम्) सुख को (ददाति) देता है (स:) वह धर्म (अत्र) संसार में (भाविमुक्ति वधूवरैः) भविष्य में मुक्तिरूपी वधू-कन्या को वरण करने वाले (भन्यैः) भव्य मनुष्यों द्वारा (समाराध्यः) याराधने योग्य है । (रत्नत्रयम्) रत्नत्रय (धर्मः) धर्म (भवेत् ) होता है, (दशघा:) दश प्रकार का (अपि) भी (धर्म:) धर्म (स्मृतः) स्मरणीय है, (च) और (वस्तुस्वभाव:) वस्तु का स्वभाव (धर्मः) धर्म है (च) और (जीवानाम् ) जीवों का ( रक्षणम्) रक्षण करना (सः) वह भी धर्म है।
मावार्थ-जिस प्रकार बोधि का पाना अतिशय कठिन है उसी प्रकार उत्तमक्षमा, मार्दव, प्रार्जव, शोच, सत्य, संवम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य इन उत्तम धर्मों का पाना भी दुस्साध्य है। यह धर्म देव असुर, नागेन्द्रादि से सतत पूज्यनीय, सेवनीय और अाराधनीय है। उभय लोक में अर्थात इस लोक में और परलाक में भी यह धर्म ही एक मात्र जीव को सुख-शान्ति देने वाला है । सर्वोत्तम-आत्मोत्थ मुक्ति सुख देने में यही-धर्म ही समर्थ है। तीनों लोकों में इसका पाना और पाकर तदनुरूप प्राचरण करना उत्तरोत्तर दुर्लभतर है। भविष्य में जो भव्यात्मा पुरुष मुक्तिवधू को बरण करना चाहते हैं उन्हें सम्यक् प्रकार इस सच्चे धर्म की आराधना, उपासना और भक्ति करना चाहिए । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् वारित्र धर्म है, उत्तम क्षमादि भेद से दश भेद वाला धर्म है, वस्तु का स्वभाव भी धर्म