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श्रोपाल चरित्र नवम् परिच्छेद]
[NEt देवें । दान लौकिका सारभूत सम्पदा को देने वाला है परम्परा से मुक्ति का दाता है । इसके बाद
, अनाथ आदि जनों को भोजन, वस्त्र प्रादि देना चाहिए। तदनन्तर अपने साधर्मीजनों को, बन्ध-बान्धबों को साथ लेकर स्वयम पारणा करें । अर्थात भोजन करें। इस प्रकार महान कल्याण का करने वाला यह श्रेष्ठतम सिद्धचक्र नत महाफल देने वाला है। संसार का हितैषी है। विश्व का संरक्षक है । अनेकों विपत्तियों का नाशक है । परम्परा मोक्षलक्ष्मी का वरण कराने वाला है।८० से ५५॥
उत्कृष्टेन विधिश्चष सर्वोत्कृष्ट फलाप्तये । द्विषड्वर्षावधिर्यक्षः कर्तध्य शक्ति भक्तितः ॥८॥ वर्षे-बर्षे त्रिवारञ्च नन्दीश्वर महोत्सवे । षड़वर्षे मध्यम ज्ञेयं जघन्येनत्रिवाषिकम् ॥७॥ पश्चाधुधापनं प्राहमुनयः परमागमे । तत्र श्रीमज्जिनेन्द्राणां मन्दिरं शर्ममन्दिरम् ॥८॥
अन्वयार्थ--(सर्वोत्कृष्टफलाप्तये) सर्वोत्तम, श्रेष्ठतम फल की प्राप्ति के लिए (उत्कृष्टेन) उत्कृष्ट रूप से (एषा) यह (विधि) विधि (दक्षः) चतुर पुरुषों द्वारा (शक्ति भक्तितः) शक्ति प्रमाण, भक्ति सहित (द्विषड्वर्षावधिः) बारह बर्ष पर्यन्त (कर्त्तव्यम )करना माहिए (वर्षे-वर्षे) प्रतिवर्ष (नन्दीश्वर महोत्सवे) नन्दीश्वर महापर्व में (कर्तव्यम ) करना चाहिए (च) और (मध्यमम ) मध्यम रूप से (षड्वर्षे) छह वर्ष (जघन्येन) जघन्यरूप से (त्रिवार्षिकम ) तीनवर्ष का (जयम) जानना चाहिए (पश्चात् व्रत पूर्ण होने पर (पर-) मागमे) परमागम में (मुनयः) आचार्यों ने (उद्यापनम् ) उद्यापन (प्राहुः) कहा है । (तत्र) उद्यापन इस प्रकार करे (श्रीमज्जिनेन्द्राणाम ) श्रीमज्जिनेन्द्रप्रभु का (घाममन्दिरम् ) सुख शान्ति का निलय (मन्दिरम) जिनालय ।
कारयित्वा महाभव्यर्वजायेस्सर्वसुन्दरः । भव्यं भन्यजनानन्द बीजमुक्तिपदं प्रदम् ॥८६॥
अन्वयार्थ - (महाभव्यः) अत्यन्त मनोरम (ध्वजाय:) ध्वजादि से (सर्वसुन्दरैः) सुसज्जित (भव्यम ) रमणीक (भत्र्यजनानन्दम् ) भव्यजनों को आनन्द दायक (मुक्तिपदम् ) मोक्षपद को (प्रदम् ) देने को (बीजम्) बीज स्वरूप (कारयित्वा) बनवाकर ।
रत्नस्वर्णमयोश्चारु प्रतिमाश्च मनोहराः । तत्प्रतिष्ठा प्रकर्त्तव्या महत्ती शास्त्रयुक्तितः ॥१०॥