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________________ श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद] [ ३५ बलाबल की पहिचान न कर संग्रामादि में विजय पाना दुर्लभ हो सकता है अथवा परिणाम विपरीत भी हो सकता है अतः इसका बराबर ध्यान रखना परमावश्यक है । इस प्रकार ये पांचों उपाय मन्त्र को भांति गृप्त रखना चाहिए। यहां प्राचार्य श्री जी ने इन्हें पच्चनमस्कार सदृश कहा है । इसका अभिप्राय इतना ही है कि जिस प्रकार गुप्त मन्त्र सर्व कार्य शिविगार होता है उसे मार गई यायों से गुप्त, राजा अपने जीवन में सदैव सफलता प्राप्त करता है । ।१७६।। यथागुप्तित्रयेणोच्चैः शोभते मुनि सत्तमः । मन्त्रोत्साहप्रभुख्यातशक्तिभिस्सप्रभुबमौ ॥७७॥ अन्वयार्थ-(यथा) जिस प्रकार (गुप्तित्रयेण) उतम तीन गुप्तियों के द्वाग (मुनिसत्तमः) श्रेष्ठ मुनिजन (उच्चैः) विशेष रूप से (शोभते) शोभा को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार (मन्त्रोत्साहप्रमुख्यात) मन्त्रणा-सलाह देने वाली और उत्साह को बढ़ाने वाली ऐसी निर्दिष्ट शक्तियों से युक्त (स) वह श्रेणिक (प्रभु) राजा (वभौ) शोभित था। भावार्थ--तीन गुप्तियाँ मुनिजनों के लिये श्रेष्ठ ग्राभूषण हैं इसी प्रकार योग्य मंत्रणा देने वाली और उत्साह को बढ़ाने वाली राजशक्तियों की प्राप्ति राजा के लिये श्रेष्ठ प्राभूषण स्वरूप है इससे राजा की शोभा बढ़ती है। गुप्तियां तीन हैं--मनोगुप्ति, बननगुप्ति, कायगुप्ति । यहां हम व्यवहार और निश्चय नय को अपेक्षा गुप्नियों के स्वरूप का विचार भी करेंगे । व्यवहार नय को अपेक्षा मनोगुप्ति का स्वरूप नियमसार में इस प्रकार श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने बताया है "कालुस्समोह सण्णारागद्दोसाइ असुह भावाणम् । परिहारो मणगुत्ती ववहारणयेण परिकह्यिम् ।।" मानसिक कालुप्य राग, द्वेप, मोह, आहार, भय, मेथुन और परिग्रह की वाञ्छा है, ये सभी अशुभ परिणाम हैं, इनको छोड़ना, इनसे अपने मन को पराङ्मुख रखना व्यवहार से मनोमुप्ति है । निश्चय से--"जा रायादिणियत्ति मणस्य जाणाहि तं मनोगुत्ती" रागादि की निवृत्ति मनोगुप्ति है अर्थात् अशुभ और शुभ दोनों से निवृत्त होकर शुद्धात्म स्वरूप में अपने उपयोग को लगाना मनोगुरित है। इसी प्रकार वचन गुप्ति के विषय में भी श्रीकुन्दकुन्दस्वामी कहते हैं.... "थी राजचोर भक्तकहादिवयणस्स पाबहेउस्स । परिहारो वयगुत्ती अलियादिणियत्ति वयरणं वा ।।" पापास्रव को कारण जो स्त्रीकथा, राजकथा, भक्तकथा, चोर कथादि हैं उनको छोड़ना. मिथ्या भाषण नहीं करना वचन गुप्ति है ।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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