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________________ [श्रीपाल चरित्र अष्टम परिच्छेद "इति यः षोडशयामागमयति परिमुक्तसकलसावद्यः । तस्य तदानों नियतं पूर्णमहिंसावतं भवति ।" समस्त सावध योग का परित्याग कर १६ प्रहर का उपवास करने वाले के उस समय पूर्ण अहिंसावत उपचार से कहा है क्योंकि व्रती भाबक के मात्र भोगोपभोग के निमित्त से स्वल्प स्थावर जोवों का घात होता है । सदा योग्य पाचरण रखने वाला वह अनर्थदण्ड रूप साबद्ध क्रियाओं को तो स्वभाव से हो नहीं करता है तथा पर्व के दिनों में आरम्भादि का भी त्याग हो जाने से सदा धर्मभ्यान में ही समय बीतता है । यद्यपि वह संयम रूप स्थान को प्रापन नहीं करता है किन्तु सम्पूर्ण हिंसा रूप प्रवृत्ति का त्याग हो जाने से उसके उपचार से महाबृतित्व है ऐसा जिनागम में कहा है ॥८६॥ अब सचित्त त्याग प्रतिमा का स्वरूप बताते है-- फलं दलं जलं बीजं पत्रशाकादिकं तथा । नेय भुक्ते सचित यो दयामूर्तिस्स पञ्चमः ॥७॥ अन्वयार्थ (सचित्तं) सचित्त अर्थात् जिनका छेदन भेदन दलन नहीं किया है ऐसे अपक्व पदार्थ यथा (फलं दलं जलं) हरे फल, पत्ते, जल (तथा) और (बीजं पत्रणाकादिक बोज एवं पत्ते के शाक आदि पदार्थों को (यो दयामूतिः) जो परम दयावान् पुरुष (न एव भुक्ते) निश्चय से नहीं खाता है (स) वह (पञ्चमः) पञ्चम प्रतिमा धारी श्रावक है । भावार्थपञ्चम सचित्त त्याग प्रतिमा धारी श्रावक अपस्व या अच्छिन्न पदार्थ जिनका छेदन भेदन दलन नहीं किया गया है ऐसे हरे फल, पत्ते, जल, बोजादि तथा पत्ते के शाकादि पदार्थों को निश्चय से नहीं पाता है। वह प्रासुक पदार्थों का ही सेवन करता है । प्रासुक किसे कहते हैं यह यहाँ ज्ञातव्य है-- सुक्कं पक्कं तत्तं विललवण मिस्सयं दब्बम । जं जंतेग य खिण्णं तं सव्वं फासुयं भणि दम् ।। शुरुक-सूखा, पक्व, तप्स-गर्म, बटाई या लवण मिश्रित पदार्थ तथा यंत्र से छिन्न भिन्न पदार्थ प्रासुक होते हैं ।।१७।। अब रात्रि भुक्तित्याग प्रतिमा का स्वरूप बताते हैं - विवामथुननिर्मुक्तस्सदासंतोष संयुतः । षष्ठस्स श्रावको रात्रौ चतुर्धाहारजितः ।।८।। अन्वयार्थ----(दिवामैथुननिर्मुक्तः) दिन में मंथन का त्याग करने वाला और (सदासंतोषसंयुक्तः) सदा संतोप भाव से संयुक्त बा शोभित रहता है तथा (रात्री) रात्रि में (चतुर्धाहार वजित:) चारों प्रकार के आहार का त्याग कर देता है (स श्रावको) वह श्रावक (पाठः) छठा रात्रिभुक्ति त्याग प्रतिमा धारी श्रावक है।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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