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श्रीपाल चरित्र अष्टम परिच्छेद ]
[४५३ (२) देवमूढ़ता-पुत्र प्राप्ति, रोग निवृत्ति और धनलाभ आदि ऐछिक फल की इच्छा से मिथ्याष्टि रागो द्वषो देवताओं की पूजन, उपासना करना देवमूढ़ता है । किन्तु सम्यग्दृष्टि, देव पर्याय में अबस्थित, पदमावती आदि देवी देवताओं का माह वान कर उनको अर्घ्य समर्पण करना देवमुढ़ता नहीं है क्योंकि लोग अरहन्त मानकर उनको नहीं पूजते हैं अपितु साधर्मी भाइयों की तरह यथा योग्य भेंट समर्पित कर उनका सम्मान करते हैं जो आगम विरुद्ध नहीं है जिनशासन की रक्षा करने वाले शासन देवी देवतामों को सम्मान देना ही चाहिये
ताः शासमादि रक्षार्थ कल्पिताः परमागमे ।
अतो यज्ञांशदानेन माननीया सुदृष्टिभिः । श्रीराल चरित ।। • अर्थात् जिनशासन की रक्षा हेतु यज्ञांश देकर शासन देवी देवताओं का सम्मान सम्यग्दष्टियों को करना चाहिये ऐसा परमागम में बताया है । क्षायिक सम्यग्दृष्टि रामचन्द्रजी ने भा क्षेत्रपाल को अर्घ्य समर्पित किया था । पद्मपुराण में मुनिसुव्रत भगवान के जन्माभिषेक के समय पर दिकपाल, लोकपाल को भी अर्घ्य दिया गया, ऐसा लिखा है
"ततः शक्रेण दिक्पाला लोकपाला यथाक्रमम् ।
संस्थाप्य पूजिता अध्य: सर्धशान्तिक हेतवे ।"
इन्द्र ने दिकपाल लोकपाल को यथाक्रम अर्श समषित कर सम्मानित किया अत: शासनदेवी देवताओं की उपेक्षा हमें भी नहीं करनी चाहिये उनको यथायोग्य सम्मान देना ही चाहिये क्योंकि वे भी जिनशासन के रक्षक हैं। इनको अर्घ्य देना देव मूढ़ता नहीं है । तीन मूढ़ताओं का प्रयत्न पूर्वक त्याग करना चाहियो क्योंकि यो सम्यग्दर्शन को मलिन करते हैं।
इसी प्रकार पाठमद हैं जो सम्यग्दर्शन को दूषित करते हैं--रत्नकरण्ड श्रावकाचार में प्राचार्य लिखते हैं--
ज्ञान-पूजां कुलं जाति बलमृद्धि तपोवपुः ।
अष्टावाथित्य मानिरव स्मयमार्गतस्मयाः ।।
१. ज्ञान का मद, २. पूजा-प्रतिष्ठा का मद, ३. कूल का मद, ४. जाति का मद, ५. बल का मद, ६. धन का मद, ७. तप का मद, ८. शरीर सुन्दरता का मद । सम्यग्दृष्टि इन आठ मदों से रहित होता है । तथा षड़ अनायतनों से भी दूर रहता है । कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र, कुमुरु सेवक, कुदेव सेवक, और कुशास्त्र सेवक को नहीं मामता उनकी उपासना भक्ति नहीं करता है । क्योंकि उससे मिथ्यात्व का बन्ध होता है नोतिकारों ने कहा भी है---
“एक बारे नमस्कारे पर देवेकृते सति ।
परदारेषु लक्षेषु पापं तस्मात् चतुर्गुणम् ।।" __ अर्थात् एक लाख परस्त्री के सेवन से भयंकर पाप होता है उससे भी चार गुणा पाप एक बार पर देव अर्थात् मिथ्या दृष्टि देवी देवताओं को नमस्कार करने से होता है । पुन: सम्य