SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० ] [श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद राजा श्रेणिक (सप्तभिस्तराम्) श्रेष्ठ सप्ताङ्ग (राज्याङ्गः) राज्यों से (राजितो) शोभित था। भावार्थ -जोवादि सप्त तत्वों से शोभित लोक के समान सप्ताङ्ग राज्यों से मंडित राजा श्रेणिक शोभते थे । जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये साप्त तत्व हैं। जो ज्ञान दर्शन लक्षण बाला है वह जीव है और जिनमें ज्ञान दर्शन गुण नहीं पाये जाते हैं वे अजोव हैं । जिन शुभाशुभ परिणामों से कर्म आते हैं वह अथवा कर्मों का आना आस्रव है। कर्मों का आत्म प्रदेशों के नेष संबंधोपाप होना मध हैना जिन शुभाशुभ परिणामों से कर्म, दूध और पानी के समान आत्मप्रदेशों के साथ संश्लेष सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं वह बन्ध है । आते हुए कर्मों का रुक जाना संवर है अथवा जिन पञ्च महावत आदि समिति, गुप्ति तपादि के धारण करने रूप परिणामों से आते हुए कर्म रुक जाते हैं वह संवर है । तप के बल से बिना फल दिये ही कर्मों का झड़ जाना अथवा कर्मों का यथाकाल फल देकर जाना निर्जरा है अथवा जिन परिणामों से कर्मों का एक देश क्षय होता है वह निर्जरा है। कर्मों को आत्यन्तिक निवृत्ति मोक्ष है अथवा आठ कर्मों का, जिन न्युपरत क्रिया निवृत्ति रूप शुक्लध्यान के बल से क्षय होता है वह मोक्ष है । इन सप्त तत्वों का योग हो संसार या लोक है । अर्थात् जैसे सप्त तत्वा के बिना लोक का समुल्लेख नहीं हो सकता है उसी प्रकार सप्त अङ्गों के बिना राज्य 'भो पूर्णता को प्राप्त नहीं होता है, समुन्नत नहीं कहा जा सकता है। राजा, मन्त्री, मित्र, कोष, देश, किला और सेना से सहित राज्य को सप्ताङ्ग राज्य कहते हैं। ऐसे सप्ताङ्ग राज्य के अधिपति श्रेणित की शोभा सप्त तत्वों से शोभित लोक के समान थी ।।७१|| उक्त सप्ताङ्ग राज्य का निर्देश करते हुए आचार्य लिखते हैं स्वाम्यमात्यसुहृदकोष दुर्गदेशबलानि च । सप्ताङ्गराज्यमित्याहुर्नीतिशास्त्रविचक्षरणाः ॥७२।। अन्वयार्थ .. (नीतिशास्त्र विचक्षणाः) नीतिशास्त्र के विशेषज्ञ पुरुषों ने (स्वाम्यमात्य) स्वामी, मन्त्री, (सुहद् कोषदुर्गदेशबलानि च) मित्र, कोष, दुर्ग, देश और सेना को (सप्ताङ्ग राज्यं) सप्ताङ्ग राज ति आहुः) ऐसा कहा है ।। ७२ ॥ भावार्य-सप्ताङ्ग राज्यों का नाम निर्देश प्रस्तुत एलोक में किया गया है जिनका लक्षण इस प्रकार है। (1) राजा-राजा, भूपति, नृपति ये सभी पर्यायवाची शब्द हैं । शब्द व्युत्पत्ति की अपेक्षा उनका लक्षण इस प्रकार है जो समस्त प्रजाजनों को राजी रखने वाला हो वह राजा है । समस्त पृथ्वी का जो रक्षक होता है वह भूपति कहलाता है । समस्त नर अर्थात् मनुष्यों का रक्षण करने वाला नृपति कहलाता है। (2) मंत्री—जो राजा को राज्य कार्य में योग्य मन्त्रणा या सलाह देने वाला हो तथा समस्त राज्य कार्यों का अधिकारी हो उसे मन्त्री कहते हैं। कहा भी है
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy