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________________ श्रीपाल चरित्र सप्तम परिच्छेद [४२३ भावार्थ-श्रीपाल महाराज का शासन इतना श्रेष्ठ था कि पाबालवद्ध सभी उसके राज्य में विशेष सुख का अनुभव करने थे। महान उत्सब पूर्वक सैकड़ों प्रकार के मान दान सम्मान के साथ पिता के श्रेष्ठ राज्य को लेकर वह पुण्यशालो श्रीपाल, सज्जनों के चित्त को हर्षिा करने वाली तथा अन्तर्गत सभी राजाओं को भी विशेष आनन्दित करने वाली गले में पड़ी हुई माला के समान सुखकारी ऐसी अपनी आज्ञा का प्रवर्तन करता था। अर्थात् श्रीपाल महाराज का शासन सबके लिये प्रियकारी-सुखकारी था ।।८५ से ८७।। पट्टदेवीपदं प्राप्य तदामदन सुन्दरी । सा रेजे कामिनी तस्य यथा मदनसुन्दरी ।।८॥' दताद्यश्च प्रियावन्दर्जगत्तोनुरजनः । साधं सम्पूर्ण भोगाङ्ग स्सत्सुखं प्राप स प्रभुः ॥८६॥ अन्वयार्थ (तदा) सब (पट्टदेवी पदं प्राप्य) पटरानी के पद को प्राप्त कर (सा) वह (मदनसुन्दरी) मैंनामुन्दरी (कामिनी) रानी ! रेजे) उस प्रकार शोभित हुई (यथा मदनसुन्दरो) जैसे कामदेव की पत्नी साक्षात् रती देवी हो (तदाद्य:) उस मैंनासुन्दरी को आदि कर (जगत्चेतोनुरजन:) जगत के चित्त को अनुर जित करने वाली सुन्दर (प्रियावृन्दैः) कामिनियों के (माध) साथ (रा प्रभुः) वह श्रीपाल राजा (भोगाङ्गः) भोग सामग्रियों से (सत्सुखंप्राप) श्रेष्ठ सुख को प्राप्त हुआ। भावार्थ --तदनन्तर पटरानी के पक्ष को प्राप्त कर वह मैंनासुन्दरी उस प्रकार शोभित हुई मानों कामदेव की पत्नी साक्षात रति ही हो । श्रीपाल महाराज जगत के चित्त को अनुरञ्जित करने वाली मैनासुन्दरी को आदि कर सभी प्रिया वृन्दों के साथ सब प्रकार के भोगों को भोगता हुअा श्रेष्ठ सुख को प्राप्त हुया अर्थात् सांसारिक सुख को प्रदान करने वाली सभी इष्ट सामनो उनको पुण्योदय से प्राप्त हो गई थी ।।८८, ८६ ।। एवं राज्ये स्थितस्सौख्यं सेव्यमानो नराधिपः । सुखं पञ्चेन्द्रियोत्पन्नम् संभुञ्जन् परयामुदा ॥१०॥ चिरकाल जिनेन्द्राणां धर्म कुर्वन् जगद्वितम् । बान पूजावतोपेत परोपकृति तत्परः ।।१।। पालयन्पुप्रयत् प्रीत्या प्रजास्सस्सुिनीतिवित् । स श्रीपाल प्रभ सत्यं जातस्सद्राज्यपालनात् ॥२॥ अन्वयार्थ --(एवं) इस प्रकार (नराधिपः सेव्यमानो) राजाओं के द्वारा सेव्यमान (पञ्चेन्द्रियोत्पन्नं सुखं) पञ्चेन्द्रियों से उत्पन्न सुख को (परयामुदा) अत्यन्त प्रानन्द से (सम्भुजन ) भोगता हुप्रा (चिरकालं) चिरकाल पर्यन्त (जगद्वितम् ) जगत का हित करने
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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