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________________ ४०४ ] {श्रीपाल चरित्र सप्तम परिच्छेद स्वचम्पानगरों गत्वा तद्वाह्मन्यवसत् सुधीः । ततोऽसौ प्राहिणोद् भद्रं पितृव्यं प्रति संधये ॥१६॥ अन्वयार्थ-(अतिमंगलांवाद्यध्वनि) अति मङ्गलमय मधुर वाद्य ध्वनि से गुजित (उद्यजिनसदनादि) उन्नत जिन भवन जहाँ है और (सोधप्रासाद सत्केतुमालाभिः) महलों वा उन्नत भवनों के ऊपर फहराती हुई ध्वजारों और मालाओं से (तजितांदिवं) स्वर्ग की शोभा को भी तजित करने वाली तिरस्कृत करने वाली (स्त्र चम्पानगरौं गत्वा) अपनी चम्पा. नगरी में पहुँच कर (सुधीः) बह बुद्धिमान श्रीपाल (तद्वाह्य न्यवसन्) उसके बाहर में ठहर गया (ततो) तदनन्तर (असो) उसने (पितृभ्यं प्रति संधये) चाचा के प्रति संधि के लिये (भद्र) भद्र नामक दूत को (प्राहिणोद्) भेज दिया । मावार्थ-वह चम्पा नगरी अपनी विभूति और शोभा से स्वर्ग को भी तिरस्कृत करने बाली थी वहाँ विशाल-विशाल प्रासाद महल तथा उन्नत जिन भवन थे जिन पर सुन्दर ध्वजायें फहराती हुई अपनी गुरूता-गरिमा को प्रदर्शित कर रही थी उन ध्वजारों के साथ शिखर पर रत्नमयी सुन्दर मालायें भी लटक रही थीं जो अपनी विभूति विशेष को प्रकट करती हुई सवको आकृष्ट कर रही थीं ऐसी उस चम्पा नगरी में पहुँचकर श्रीपाल महाराज नगरी के बाहर ही ठहर गये और चाचा वोरदमन के प्रति सधि के लिये भद्र नामक दूत को भेजा। स्वामी के प्रति य भक्ति रखने वाला वह भद्र नामक दूत भी शीघ्र राजा बोरदमन के पास पहुँच गया । सोऽपि गत्वा तं धीरदमनाख्यं जगाव च । भो प्रभोऽत्र समायातः श्रीपालः पालितारिवलः ॥१७॥ सर्यदेशान् समासाद्य गृहीत्वा सारसम्पदम् । महासैन्यशतेनोच्चैर्महासामर्थ्य संयुतः ।।१८।। अन्वयार्थ -(च) और (सोऽपि) वह भद्रनामक दुत मी (बीरदमनायं) वीर दमन नामक राजा के पास (द्र तंगत्वा ) शीघ्र जाकर (जगाद, बोला (भो प्रभो) हे प्रभु ! (सर्वदेशान् समासाद्य) सभी देशों को पहुँच कर (सारसम्पदम् गहीत्वा) सार भूत सम्पदा को लेकर (महासैन्यशतेनोच्चैः) सैकड़ों विशाल महासन्य के द्वारा (महासामर्थ्यसंयुतः) बहुत बड़ी शक्ति से सहित (पालिताखिलः) सम्पूर्ण देशवासी जिसके रक्षक है ऐसा (श्रीपाल:) श्रीपाल (अत्रसमायातः) यहाँ पाया है। भावार्थ---उस दूत ने वीरदमन राजा को सर्वप्रथम राजा श्रीपाल का संक्षिप्त परिचय दिया और कहा कि सम्पूर्ण देशों को जीतते हुए, वहाँ की सारभूत सम्पदाओं को लेकर, महासैन्य रुप विशाल शक्ति से सहित, बह श्रीपाल यहाँ आया है जिसकी सेवा में सभी राजा और देशवासी सदा तत्पर रहते हैं ।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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