SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद] नाना प्रकार की भोग विलास की सामग्रियों को भोगते हुए भी अपने मन को जिनागम के अध्ययन में तत्त्व चिन्तन में रत रखते थे। जिनप्रणीत श्रावक धर्म का तत्परता पूर्वक पालन, संरक्षण और उद्योतन करने वाले श्रीपाल महाराज सारभूत परोपकार के कार्यों में सदा प्रयत्न शील रहते थे । इस प्रकार पुण्य की निधिस्वरूप अर्थात् पुण्य की साक्षात् मूर्ति स्वरूप गुणरूपी आभूषणों से मांडित श्रेष्ठ यश वा कीति को प्राप्त वे श्रीपाल महाराज श्रेष्ठ और प्रतापशाली परिकरों के साथ वहाँ उज्जयनी नगरी में रहने लगे। इति श्री सिद्धचक्रपूजातिशयप्राप्ते श्रीपाल महाराज चरित्रे भट्टारक श्री सकलकीर्तिविरचिते श्रीपाल महाराज बहुकन्यका सहस्र विवाहलाभेन सह कमलावती माता मदनसुन्दरी भार्या सन्दर्शन व्यावर्णनो नाम षष्ठम् परिच्छेद: समाप्तः । इस प्रकार भट्टारक श्री सकलकीति प्राचार्य विरचित श्री सिद्धचक्रपूजातिशय के फल को पाने वाले श्रीपाल चरित्र में श्रीपाल महाराज का सहस्र कन्याओं के साथ विवाहलाभ के साथ माता कमलावती और भार्या मदनसुन्दरी के सम्यक् मिलन का वर्णन करने वाला छठापरिच्छेद समाप्त हुआ।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy