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[श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद
परिणीय ततोमध्ये बहुदेशाधिनायकान् । जित्वातान् रत्नमाणिक्य प्राभ तानांशतानि च ॥१०३।। गृहीत्वा मत्तमातङ्ग तुरङ्ग धनादिकम् । गृह णन् पदे-पदे पुण्यात् सोत्साहपालयन्महीम् ।।१०४।। आज्ञा विस्तीर्य च स्वस्य चतुरङ्ग बलयुतः । रूपलावण्यसम्पन्नः स्वान्तः पुर समन्वितः ।।१०।। अत्यन्त पुण्यपाकेनपूर्ण दिशवत्सरैः । प्रोगय महानश्वर श्रीसुखाङ्कितः ॥१०६।। समागत्य प्रभ स्तत्र भेरीनादशतैस्तदा ।
उज्जैन्या बहिर्देशं व्याप्यसर्वत्र संस्थितः ॥१०७॥ अन्वयार्थ- (सबूतोपेतो) उत्तमव्रतधारी (श्रीपाल:) श्रीपालराजा (महासन्यः विशाल सेना सहित (लीलया) क्रीडामात्र से (महीम्) पृथ्वों को (साधयन्) जोतता हुआ (महोत्सवैः) महाउत्सवों से (महाराष्ट्रदेशम्) महाराष्ट्रदेश को (गत्वा) जाकर (तद्) उस (देशानेक) देश की अनेक (राजेन्द्र) राजा (च) और (पञ्चशतानि कन्याः) पानसी कन्याओं को (परिणीय) विवाह कर (ततः) पुन: (धीर:) वह धीर (गुर्जरसंज्ञके ) गुर्जरनामक (देशे) देश में (स्व पुण्यपरिपाकतः) अपने पुण्योदय से (गौर्जर) गुर्जर (भूपालान्) राजाप्रो को (जित्वा) जीतकर (तेषाम् ) उनकी (सप्तशतानि) शानसौ कन्या:) कन्याओं को (उच्चैः) बहुत (घनादिभि:) धनादि के साथ (लात्वा) लाकर (धीमान् ) बुद्धिशाली (मेदपाटस्थभूपानाम्) मेदपाटस्थ देश के राजाओं की (शतद्वय) दो सौ (सारकन्याः) उत्तम सुन्दरी गुणवतो कन्याओं को (विवाहविधिमा) विधिवत् विवाह कर (समादाय) लाकर (ततः) इसके बाद (गुणोज्वल:) निर्मलगुणों से दीप्तिमान् बह (अन्तवासीनाम् ) निकटवर्ती अन्य देशों के (राज्ञाम्) राजाओं को (मनोहरा:) सुन्दर (सारकन्याः ) अनुपम बालानों (पष्णवति) छियानवे (सारकन्या:) अप्सरा समान कन्याओं को (सम्भ्रमेण) उत्साह (च) और (अतिविभूतिभिः) अत्यत वैभव के साथ (परिणोय) परणकर (सुधी:) विद्वान् (ततोमध्ये) वहाँ मध्य में (बहुदेशाधिनायकान्तान्) बहुत से देशों के अधिपति राजाओं को (जित्वा) जीतकर (च) और (शतानि) सैकडों (रत्नमाणिक्य प्राभूतानाम् ) रत्न, मागिाक्य आदि उपहारों (भेटों) को (गृहीत्वा) लेकर, (पुण्यात्) पुण्य से (पदे-पदे) पग-पग पर (मत्तमातङ्ग) मदोन्मत्त विशाल गज (तुरङ्ग) अश्व (धनादिकम् ) अनेक प्रकार धनादि को (गृहणन् ) स्वीकार करता हुआ (सोत्साह) उत्साह से (महोम्) पृथ्वो को (पालयन् ) पालन करता हुआ (च) और (चतुरङ्गबलैः) चतुरङ्गबल (युतः) सहित (स्वस्य) अपनी (आज्ञाम ) प्राज्ञा को (विस्तीर्य) विस्तृत करके (अत्यन्त पुण्याकेन) तोव्रतम पुण्योदय से (रूपलावण्यसम्पन्नाः) रूपलावण्ययुक्त (स्व:) अपने (अन्तःपुर) अन्तःपुर से (समन्वितः) परिवेष्टित (क्रमेण) क्रम से (द्वादशवत्सरैः)