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[श्रीपाल चरित्र पष्टम परिच्छे । अश्यार्थ तदनन्तर (पश्विनी) पमिनी नाम वाली राजकुमारो (स्वचित्तस्थम्) अपने मन में स्थित विचार (आह) बोली (कि) क्या (सः) वह (भूतलें) पृथ्वीमण्डलपर (जीवति ) जीता है ? (तदा) तब (आकर्ण्य) इसे सुनकर (सः) उस श्रोपाल (सुधीः) बुद्धिवन्त ने (तरय) उस चरण का (इदम् ) इस प्रकार (उत्तरम् ) उत्तर दिदौ) दिया ।।५।।
दानं चर्चा तपश्शीलं श्रुतधर्मजयादिकम् । यो क्षमः न हितं कर्तुं कि स जीवति भूतले ॥५६।।
(तस्य भो जीवितेन किमिति च पाठः) अन्वयार्य-(यः) जो व्यक्ति (दानम्) दान (अर्चाम् ) पूजा (तपः) तय (शीलम्) पील (था धर्म जमादिमम) आगम का पठन, धर्म सेवन, जपध्यादि (हितम्) हित (कर्तुम् ) करने को (क्षमः) समर्थ (न) नहीं (सः) वह (किं) क्या (भूतले) संसार में (जीवति ) जीता है ? ॥५६॥ पाठान्तर का उत्तर देता है--
दानपूजा तपश्शीलधर्मेषु य इह क्वचित् ।।
नानुरागी तथा भोगी, तस्य भो जीवितेन किम् ॥५७।।
अन्वयार्थ-(इह) संसार में (य) जो (दानपूजातपशील धर्मेषु ) दान, पूजा, तप, शीलादि धर्मकार्यों में (क्वचित्) कभी भी (अनुरागी) प्रेमी (न) नहीं होता (तथा) अपितु (भोगी) भाग ही भोगता है (भो) हे भव्यो ! (तस्य) उसके (जीवितेन) जीवन से (किम् ) क्या ? ||५७।।
भावार्थ-लक्ष्मी देवी के प्रश्नोत्तर हो जाने पर पभिनी देवी ने अपने मनोगत भाव ध्यक्त किये । उसने एक चरण समस्या के रूप में उपस्थित किया कि किस जोधति भूतले" क्या बह पृथ्वी पर जीवन्त है ? इसके शेष तीन चरण आप अपनी बुद्धि कौशल से बनाइये? यह सुनकर विचक्षण श्रीपाल ने तत्काल तीन चरणों को बनाकर नं० ५६ के श्लोक में युक्तियुक्त उत्तर दिया--
जो व्यक्ति चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान. श्री जिनेन्द्रप्रभु की अभिषेकपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा, यथाशक्ति तप शोल धारण पालन अागम का अध्ययन, धार्मिक क्रिया, जप आदि हितकर कार्यों के करने में समर्थ नहीं होता अर्थात् इन उपर्युक्त कार्यों के करने में प्रवृत्त नहीं होता वह व्यक्ति-नर हो या नारी क्या भूमितल पर जीवन्त है ? अर्थात् मृतक समान है। उसका जीना निष्फल व्यर्थ है ।।५६ ।। इसी समस्या के दूसरे पाठ का उत्तर भी श्लोक नं० ५७ में निम्न प्रकार है
जो व्यक्ति संसार में कभी भी दान नहीं देता, जिनपूजा नहीं करता, त्याग-संयम-तप धारण नहीं करता, शीलाचार पालन नहीं करता अन्य भी धर्मकार्यों का सम्पादन नहीं करता