SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४६] [श्रीपाल चरित्र पष्टम परिच्छेद रतीरेखा मिधेत्यादि नामिन्यश्च पृथक्-पृथक् । प्रतितामिति तदा यो रगति भूपतिम् ॥७॥ नत्यन्तीनाम् पुरेऽस्माकं यः कोऽपि पुरुषोत्तमः ।। गीत वादिविद्याभिः रञ्जयिष्यति मानसम् ।।।। सोऽस्माकं पतिरित्युच्चै भावोनान्यः परो ध्र वम् । तदाकर्ण्य वचस्सोऽपि श्रीपालो भूपतिर्मुदा ॥ कुण्डलाख्यपुरं गत्वा तास्समालोक्य कन्यकाः । रूप सौभाग्य संभार सत्सुधारस कूपिकाः ।।१०।। सर्व विज्ञान सम्पन्नस्सुधीस्त्रैलोक्य मोहनम् । कृत्वा गानादिकं सर्व मोहयित्वा च तन्मनः ॥११॥ तत्कन्यकाः शतश्चासौ परिणीयमहोत्सवः । सुखेन संस्थितस्तत्र सुपुण्यात् किन्न जायते ॥१२।। अन्वयार्थ-(ते) वे परिणक (अपि) भो (नरवा) नमस्कार करके (जगू) बोले (राजन्) हे भूप ! (कुण्डलाख्य) कुण्डल नामक (पुरात्) नगर से (वयम् ) हम लोग (समागताः) आये हैं (तत्र) उस नगर का (मकरध्वजसंज्ञकाः) मकरध्वज नामका (प्रभुः) भूपति है (तस्य) उसको (कप्पू रतिलका) कप्पू र शिलका (गुणान्विता) गुणों से अलंकृत (राज्ञी) रानी (जाता) है (तयोः) उन दम्पत्ती से (समुत्पन्नः) उत्पन्न (मदनसुन्दरः) मदन सुन्दर (पत्रः) पुत्र (तथा) एवं (अमरसुन्दरः) अमर सुन्दर (संज्ञक:) नाम वाला (सत्पुत्रः) श्रेष्ठ पुत्र (बभूव) हुए (चित्रलेखा) चित्रलेखा (वृहद् ) बडी (पुत्री) पुत्री (शत) सौ (अन्या:) दूसरी (कन्यकाः) कन्यायें (पृथक-पृथक् ) अलग-अलग (नामिन्याः) नाम वाली (जगदरेखा) जगतरेखा (सुरेखा) सुरेखा (गुणरेखा) गुणरेखा (अथ) एवं (मनारेखा) मनोरेखा (जीवन्ती) जीवन्ती ( रम्भा) रम्भा (भोगवती) भोगवती (अथ) तथा (ततः परः) इसके अलावा (रतिरेखा) रतीरेखा (पिधाः) नामवाली (इत्यादि) आदि (सुता) कन्या है (ताः) उन्होंने (इति) इस प्रकार (प्रतिज्ञाम् ). प्रतिज्ञा (चक:) की है कि (य:) जो (नृत्यन्तीनाम् ) नृत्य करती हुई (अस्माकम् ) हम लोगों के (पुरे) सामने (यः) जो (कोऽपि) कोई भो (पुरुषोत्तमः) उत्तम पुरुष (गीत वादित्र) गाना बजाना (विद्याभिः) विद्याओं द्वारा (भूपतिम) राजा के (मानसम ) मन को (रजयिष्यति) रजायमान करेगा (सः) दही (ध्र वम् ) निश्चय से (अस्माकम् ) हमलोगों का (पति) भर्ता (भावी) होगा (न अन्यः) अन्य नहीं (इति) इस प्रकार के (वचः) वचन (उच्च:) सम्यक रूप से (आकर्य) सुनकर (तदा) उसी समय (सः) वह (भोपाल:) श्रीपाल (भूपति) राजा (अपि) भी (मुदा) अानन्द से (कुण्डलाख्यपुरं) कुण्डलपुर को (गत्वा) जाकर (रूपसोभाग्य सम्भार सत्सुधारस कूपिकाः) लावण्य,
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy