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________________ [श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद से प्रथम पतिदेव के चरणकमलद्वय में नमस्कार किया। प्रणाम कर विनम्र भाव से पुनः प्राधे प्रासन पर पतिदेव के समीप पासीन हुयी । सच है, बिनय कुलीनता की घोतक है । विनम्रमनुष्य अपने बड़प्पन का स्वयं हो प्रकाशक होता है ।।१८।। ततोऽन्योन्य वियोगोत्थां वर्ता निवद्यदम्पत्ती । प्रापतुः परमां प्रीति तौ सम्पूर्ण मनोरथौ ।।१८३॥ अन्वयार्थ --(ततो) तदनन्तर (आन्योन्य ) एक दूसरे को (वियोगोत्थाम वियोग से उत्पन्न हुयी (वार्ताम् ) वातों को (निवेद्य) कह कर (दम्पत्ती) दोनों पति पत्नी (सम्पूर्ण) सर्व (मनोर श्री मोरनों युक्त ) से दोनों लाम् । ॐा प्रीतिम) प्रेम को (प्रापतुः) प्राप्त हुए। भावार्थ-बिछ डे हुए दम्पत्ति संयोग प्राप्त कर हर्ष से विभोर हो गये । एक दूसरे ने आपस में अपने-अपने वियोग जन्य कष्टों का परिचय दिया। एक दसरे की व्यायाग्रा को ज्ञातकर एवं उनसे निवृत्ति प्राप्त कर वे दोनों ही अत्यन्त आनन्दित हुए। जिनका मनोरथ पूर्ण हो जाता है उसे भला प्रानन्द क्यों न होगा ? होगा ही। अत: जिनके सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो चुके वे परम सुख और सन्तोष को प्राप्त हुए, अर्थात् समस्त दुःख विस्मृत हो गये ।१८३ । इतिविघ्नवजं हत्वा श्रीपालः पुण्यपाकतः । भुञ्जमानः स्वभार्याभ्यां यावदास्ते परं सुखम् ।।१८४॥ अन्वयार्थ- (इति) इस प्रकार (विघ्नत्रजम ) विघ्नसमुह को (हत्वा) नाणकर (पुण्यपाकतः) पुण्योदय से (श्रीपालः) श्रीपालकोटिभट (स्वभार्याभ्याम् ) अपनी दोनों पत्नियों सहित (परम्) अत्यन्त (मुखम्) सुख (भुञ्जमानः) भोगता हुआ (पावन ) जब (प्रास्ते) स्थिर हुमा । भावार्थ -दोनों पत्नियों सहित श्रीपाल सूख पूर्वक विराजे । अपने विशेष पुण्योदय से समस्त विधनसमूह को नष्ट कर दिया । जीवन और भार्या दोनों का रक्षण हो गया । अब मिलन भी हो गया । इस प्रकार सांसारिक विषय सुखों को भोगता हुप्रा जब श्रीपाल कोटोभट निश्चिन्त हुआ कि उसी समय एक दूसरी घटना घटी। वह निम्न प्रकार है तावदाजा समाहूय मापारणैः श्रेष्ठिनं खलम् । इत्यदण्डयदेवादी कुण्डेण्मेध्यभृतेशुऽचौ ॥१५॥ मज्जनं तस्य पाणानामकारयत् क्रुधा पुनः । शिरोमुण्डनमारोहं खराणामप्यकारयत् ॥१६॥ ततोऽनि हस्तकर्यादि कत नस्तं च तस्समम् । हन्तुमारभते राजा कोपानल समन्वितः ।।१८७॥
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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