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[श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद तिलक नामका सहस्रकूट जिनालय था। उसके वज्रमयी किशड जड़े थे। जिन्हें स्त्रोलने में कोई समर्थ न था। दिगम्बर ज्ञानी मुनिराज के प्रादेशानुसार मेरे पिताने वहाँ अपने सेवक स्थापित कर दिये थे । इस वीरशिरोमणि ने यहां आकर उस अनेक वर्षो से बन्द अति मनोहर जिनभवन के द्वार सहज ही में खोल दिये । सेवकों द्वारा यह वृतान्त ज्ञात कर मेरा पिता राजा स्वयं अविलम्ब वहाँ आया और ससम्मान श्रीपाला को नगर प्रवेश करा यथायोग्य विधि से मेरा विवाह उसके साथ कर दिया । मैं सानन्द पोत में सवार हुयी। मेरे पतिदेव श्रीपाल दयालु जिनधर्म सेवी जिनसिद्ध भक्त सरलाचित थे । कुछ समय बाद एक दिन इस कवला धबला सेठ की दृष्टि मुझ पर पडीसीन रूपन्नासर के प्रमोशन करने में असमर्थ कामी प्रासक्त हो गया। उसी पापी ने कपट से कोटिभटः श्रीपाल को सागर में गिराया। मेरा शोल जिनशासनवत्सला पद्मावती आदि देवियों और क्षेत्रपालादि देवों द्वारा रक्षित किया गया। उनके भय से यह दुष्ट मेरा बाल बाँका न कर सका । हे राजन् ! हे देव ! अपने पुण्य. प्रताप से यह श्रीपाला स्वयं महाभीषण सागर को तैर कर यहाँ पाया है । हे भूप ! निश्चय ही यहाँ पाकर यह आपका जवाई बना है। यह महागङ्गाजल सदृश निर्मल है । जिन और सिद्धभक्ति से सदा पवित्र है महा उज्ज्वल गुणगणमण्डित है । इस समय उस पापी, दुराचारी, महाकपटी, दम्भी दुरात्मा घवल सेठ के पोत यहाँ आये हैं । यहाँ पाकर भी इस पापी ने अपना कपट जाल फैलाया है । यह विरूपक-नटों का षडयन्त्र सम्पूर्ण उसी दैत्य की करतूत है हे राजन् पाप निश्चय समझो । इस महामना को कौन चाण्डाल कहता है जरा मुझे बताओ तो ? आप कहिये वह कौन पापी है जो भाण्ड कह कर स्वयं नरकगामी होना चाहता है ।।१५६से १६०।।
तदा श्रवणमात्रेण स भूपो धनपालथान् । नष्ट सन्देह सन्दोहः शीघ्रमुत्थाय सज्जनः ॥१६॥ साद्ध तत्र समागत्य श्मशाने भूरिभीतिदे ।। श्रीपालस्याग्रतः स्थित्वा प्राञ्जलिः प्राह भो स्फुधीः ॥१६२॥ ग्रहो श्रीपाल भूपाल जिनाज्ञापाल भूतले । मया चाज्ञानिना तीवपीडितोऽसि भटोत्तमः ॥१६३।। चाण्डालबञ्चितेनोच्च वं क्षमाकर्तुमर्हसि ।
यतस्सन्तो भवन्त्येव पीडितानां हितङ्कराः ।।१६४॥ प्रन्ययार्थ-तदा) तब (श्रवणमात्रेण) मदनमञ्जूषा के मुखारविन्द से श्रीपाल का सच्चा वृत्तान्त सुनते ही (स) वह (धनपालः) धनपाल (भूपः) राजा सन्देह) शङ्का (सन्दोहः) समूह से (नष्ट:) रहित हुआ (शीघ्रम्) तत्काल (उत्थाय) उठकर (सज्जनः ) सत्पुरुषों के माथ (साम) साथ (तत्र) वहाँ (भूरिभीतिदे) भयङ्कर भयोत्पादक (मशाने) श्मशान में (समागत्य) आकर (प्रालिः ) हाथ जोड (श्रीपालस्याग्रतः) श्रीपाल के आगे (स्थित्वा) खडा होकर (प्राह) बोला (भो) हे (सुधी:) बुद्धिमन (भूतले) संसार में आप (जिन प्राज्ञा