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________________ २८८] श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद न्ययार्थ–राजा धनपाल मुनिराज से प्रश्न करता है-(ग्रहो) भो (स्वामिन्) गुरुदेव (पत्र) अब (मे) मेरो (सुतायाः) पुत्री का (वरः) पत्ति (क:) कौन (भविष्यति) होगा (तग्निशम्य) उसे सुनकर (मुनिः) मुनिमहाराज (उच्च.) विशेषता से (जगाद:) बोले (महीपतेः) हे भुप (श्रण,) सुनो (यो) जो (भजाभ्याम् ) हाथों से (समुदम् । सागर को (समुत्तीर्य) तर कर (च) और (आगमिष्यति । आयेगा (सः) वह (ते) तुम्हारी सुतापति) पुत्री का पति (भावी) होनहार है (तत्समाकर्ण्य) मुनिवाणी को सुनकर (भूपतिः) राजा ने (तदाप्रभृतिक्षणात्) उसी समय से (तम् ) उसे (अन्वेषणे) खोजने में (स्वान्) अपने (सद्भृत्यान्) श्रेष्ठ नौकरों को (सर्वत्र) सब जगह (योजयामास) नियुक्त कर दिया, (तदा) तब (तत्पुण्ययोगत:) उसके पुण्य योग से उन्होंने (स्थिरच्छायम ) सघनच्छा या वाले (पादपम् ) । (तत्र) वहीं (वृक्षतले) उस वृक्ष के नोच (थमहानये) थकान दूर करने को (संस्था ) विराजे हुए (तम्) उस (श्रीपालम्) श्रीपाल को (मालोक्य ) देखकर (च) और (स्वपुण्यत:) अपने पुण्य से (सत्यं) निश्चय ही (स एव वही (पूतात्मा) पुण्यात्मा (समायातः) आगया (इति) ऐसा (मत्वा) मानकर (मानसे) मन में (तुष्टाः) संतुष्ट हुए (तम्) उस (भूपतिम्) राजा के पास जाकर (भक्तित:) भक्ति से (जगुः) समाचार काहा।। भावार्थ - --धनपाल राजा अपनी रूपसुन्दरी गुणवी कन्या के पाणिग्रहण का विचार करने लगा । यौवन की देहली पर पदन्यास करती कन्या की कौन माता-पिता अपेक्षा करंगे ? अस्तु पुण्ययोग से एक दिन महाराजा धनपाल ने अवधिलोचन मुनिराज के दर्शन किये । NI ' - : : - । - बर १ -:
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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