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________________ २८४] [ श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद (न) नहीं (याति) आती ॥४०॥ (पचत्रिशदक्षरे:) पैतीस अक्षरों वाले इस मन्त्र से (आकृष्टा) प्राकषित (इब) सदृश (सन् ) होती हुयी (सद्गतिः) उत्तमति (सदा) हमेशा (अयलोकलक्ष्मो) नोन लोक को सम्पदा से (समन्विता) सहित (स्वयम्) अपने प्राय (प्रायाति) आजाती है ॥४१।। (भा) हे (महाभव्याः) महाभन्यजनहो (परमेष्ठिनाम । पञ्चपरमेष्ठो बाचक (सन्मन्यात्) श्रेष्ठ मन्त्र से (शतशर्मप्रदम् ) संकडों सुख शान्ति देने वाला (इन्द्रनागेन्द्रचक्रयादि) शक्र, धरणेन्द्र चक्रवर्ती, वलदेव आदि का (पदम ) पद (प्राप्यते) प्राप्त किया जाता है ॥४२॥ (इह इस लोक में (भव्यानाम) भव्यों का (अयम ) यह (मन्त्रः। मन्त्र (कल्पवृक्षः) कल्पवृक्ष (अनुत्तरः) अद्वितीय (चिन्तामणि:) चिन्तामणि रत्न (च) और (वाहितार्थ) इच्छित पदार्थ (स्वरूपिणी) रूपिणी (कामधेनुः ) कामधेनु (च) और ।। ४३।। (अयम ) यह (उत्तम:) श्रेष्ठतम (मन्त्रः) मन्त्र (माता पिता) माता पिता (तथा) तथा (बन्धुः) भाई है (ततः) इसलिए (सुखी) सुखी (च) और (दुःखी) दुखो भिव्यैः) भव्यों द्वारा (सर्वदा) हर समय (समाराध्यः) सम्यक् अाराधना योग्य है ।।४४।। (अहो) पाश्चर्प (अत्र) लोक में (सताम् ) सम्यग्दृष्टि को (सन्मन्त्रमाहात्म्यात्) उत्तम मन्त्र के प्रभाव से (श्री तीर्थनाथस्य श्री तीर्थङ्करभगवान को (विभूतयः) सम्पत्तियाँ (जम्यन्ते) प्राप्त होती हैं (परः) दूसरी (सच्छियः) सम्पदा को (क.) क्या (कथा) कहानो ? ।।४५।। (भो भन्याः) हे भन्यो ! (बहुः) अधिक (उक्तन) कहने स (किम् ) क्या ? (एतेन) इस (मन्त्रण) मन्त्र से (निश्चितम्) निश्चय ही (भव्यैः) भव्य (स्वर्गम् ) स्वर्ग (सम्प्राप्य) प्राप्त कर (च) और (कमेण) क्रम से (शर्मद:) शान्ति-सुख देने वाला (माक्षः) मोक्ष (प्राप्यन्ते) प्राप्त करते हैं ।।४६।। भावार्थ-पञ्चपरमेष्ठी वात्रक पञ्चनमस्कार मन्त्र लोकोत्तर महिमा और प्रभावधारी है। इसके महात्म्य को कौन अल्पज्ञ वर्णन कर सकता है ? कोई भी नहीं। इसके प्रभाव से जल स्थल हो जाता है और अग्नि जलरूप परिणम जाती है। एक समय वर्षाकाल में एक थावक गहन अटवी में जा पहुँचा । मार्ग खोजता-खोजता एक नदो के किनारे पाया । वर्षा हो जाने से नदी में पुर-बात आ गई । उसो समय वहाँ एक मौलवी साहब प्राये और तनिक ध्यानकर नदी में चल दिये । श्रावक (जैन) भौंचक्का सा देखता रहा । उसके पार हो जाने पर पूछा भाई तुम किस प्रकार पार हुए ? मुझे भी किनारे ले जानो न ? मियाजो ने पुनः इस पार पाकर उसे साथ ले नदी पार कर ली। दोनों ही को लगा कि वे रोड़ पर चल रहे हैं। दूसरे किनारे पर पहुंचने पर उस श्रावक ने उससे पार होने का कारण पूछा, उसने कहा मुझे एक दिगम्बर सन्त ने मन्त्र दिया था और कहा था कि यह मन्त्र असम्भव कार्य को भी संभव करने वाला है तथा वन, पर्वत गुफा मशान सर्वत्र सहायता देने वाला है । मेरे अनेकों कार्य इससे सिद्ध हुए हैं । याज भी इसी के ध्यान से मैं इस घटना को पार कर सका हूँ। उस जैन का आश्चर्य असोम था । पूछा, भाई ! "वह मन्त्र कौनसा है ? मुझे भी बता सकते हो क्या ? उसने सहज स्वभाव से मन्त्र सुना दिया "गमो अरहताणं.... इत्यादि । सेठ जो बोले इसे तो मैं अच्छो तरह जानता हूँ, मैं ही नहीं मेरे घर के चूहे-बिल्ली भी रटते हैं ।" उस श्रद्धालु ने कहा, हजर "आप जानते हैं पर मानते नहीं, मन्त्र-तन्त्र श्रद्धा के विषय हैं न कि कोरी तोता रदन्त के।" देखिये महामन्त्र से पानी स्थल हो गया । इसी प्रकार श्री रामचन्द्र द्वारा सीता
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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