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________________ २५० ] [ श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद किया । भगवान का पञ्चामृताभिषेक पाप का नाशक और पुण्य का वर्द्धक होता है । वे प्रतिमाएँ देवेन्द्रों द्वारा पूज्य थीं । परम पावन, पापविनाशक थीं । वस्तुतः साक्षात् जिनेन्द्रदर्शन का जो फल होता है वही जिनबिम्ब दर्शन का भी प्राप्त होता है कर्पूरादि से मिश्रित शुद्ध जलधारा से श्री जिनेन्द्र प्रभु की पूजा की ।। ११५ - ११६ । । चन्दनागरुकाश्मीर सरस्सर्व शान्तये । विशुद्धाक्षतरुच्चैः पुण्य पुजैरिवामलैः ॥११७॥ जातिचम्पकपुन्नागपद्याः कुसुमोत्करैः । पूजाञ्चकार पूतात्मा भव्यचेतोनुरञ्जनैः ॥ ११८ ॥ श्रन्वयार्थ - ( पूतात्मा ) पवित्रात्मा श्रीपाल ने ( सर्वशान्तये ) सर्वताप सन्ताप की शान्ति के लिए ( चन्दनागुरुकाश्मीर हो ) चन्दन, गुरु, केशर, समान शीतल पदार्थों से, ( पुण्यपुञ्ज रिव) पुण्यरूप पुञ्ज के समान ( अमले : ) स्वच्छ ( उच्चकैः ) अनेक अखण्ड ( विशुद्ध ) परम पवित्र ( प्रतर्क : ) अक्षतों से तथा (जाति) मल्लिका ( चम्पक) चम्पा ( पुन्नाग) नागकेशर (पद्म) कमल (आद्य : ) इत्यादि (कुसुमोत्करैः) उत्तम पुष्पों से ( भव्यतीनुरञ्जनः ) भव्यात्माओं के मन को हर्षित करने वाली (पूजाम) पूजा ( चकार ) की । I मायार्थ- संसारजन्य विविध तापों को नाश करने वाली चन्दनादि से पूजा की अखण्ड अक्षतों से की गई पूजा भव्यों को प्रखण्ड अक्षय सूख प्रदान करती है। अतः अमल, अखण्ड, शुद्ध उत्तम अक्षत पुञ्जों को चढाया । मदनवाण से सारा संसार पीडित है । यह काम मोह की पाश है। और तो क्या ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे महापुरुष भी इसके चंगुल में फंस गये | वस्तुतः यह काम भोग आकांक्षा जीव को अन्धा बना देती है। ऐसे दुर्जयभट काम का नाश करने वाली श्री जिनभगवान की पुष्प पूजा है । यतएव श्रीपाल ने नाना प्रकार के विविध पुष्पों से श्रीमज्जिनेन्द्र भगवन्त की वैभव महित पूजा की। अर्थात् भव्य करने वाली भव्य पूजा की ।। ११७-११८ ।। तथा जनों का चित्त हरन - नैवेद्येर्बहुभिर्भेदे दुख दारिद्रयहारिणिः । रत्नकपूर दीपोधे: दीपिताखिल दिड् नुखैः ।। ११९ ।। कृष्णागरु समुद्भूतैधू पैस्सौभाग्यदायकः । नालिकेरा जम्बीरः फलैर्मुक्तिफलप्रदः ।। १२० ।। अर्ध्यादिभिः समभ्यर्च्य वस्तुस्सा रेस्सुखाकरैः । सवार स्तुतिति शर्मसन्दोहदायिनीम् ।। १२१॥
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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