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________________ [२१३ श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद अवसुर के (च) और ( सुथोषिताः) स्त्रियों के (नाम्ना) नाम के (धनेन) धन से (जीवन्ति) जीते हैं (एते) ये (अधमाधमा) अधम से अधम (भवन्ति) होते हैं भावार्थ ---श्रीपाल अपनी प्रिया को नीति पूर्वक कहते हैं कि जो पुरुष स्वयं पुरुषार्थ न कर परधन के आश्रय रहते हैं वे नीच हैं । अर्थात् जो मामा के, बहिन के, श्वसुर के और स्त्रियों के नामके धन-वैभव में अपना जीवन निर्वाह करता है वह महान अधम पुरुष है । पुरुष माम ही उसका है जो स्वयं पुरुषार्थ करे। अभिप्राय यह है कि मैं प्रवसुर के धन से अपना जीवन यापन कर रहा है इसीलिए मेरे पिता का नाम भी लुप्त हो गया । और मैं स्वयं भी लज्जा का पात्र बन गया ॥७॥ । भुजोपाजित वित्तेन भुञ्जन्तेयेऽनिशं सुखम् ।। तेऽत्र सत्पुरुषा लोके परे दुनिशालिनः ॥८॥ अन्वयार्थ- (अ) यहाँ (लोके ) संसार में (ये) जो (भुजोपार्जित) अपने वाहुबल से कमाये {वित्तेन) धन से (अनिशम्) निरन्तर (सुखम् ) सुख (भुजन्ते) भोगते हैं (ते) बेही (सत्पुरुषाः) सज्जन-उत्तम पुरुष हैं (परे) अन्य (दुर्मानशालिनः) मदोन्मत्तनिरेदम्भी हैं। भावार्थ--हे प्रिये, इस संसार में जो पूष अपने स्वयं पुरुषार्थ कर धन कमाते हैं । वापारादि करते हैं वे ही सज्जन हैं, पुरुष कहलाने के अधिकारी मनस्वी हैं। उनका ही झोगोपभोग सुख भोगना सार्थक है। शेष जो पराधीन सुख भोगते हैं उन्हें अधम पुरुष कहा जाता है वे मात्र पाखण्डी हैं ।।८।। धनं विना न भातीह नरलोके निरन्तरम् । यथा सुगन्धता हीनो नाना कुसुमसञ्चयाः ॥६॥ अन्वयार्थ ---(यथा) जिस प्रकार (सुगन्ध्रता) सुगन्धी (होनः) रहित (नाना) अनेक (कुसुमसञ्त्रयाः) पुरुषों का समूह (न) नहीं (भाति) शोभित होता है (तथा) उसी प्रकार (इह) यहाँ (नरलोके) मनुष्यलोक में (निरन्तरम ) निरन्तर (धनं) धन के (बिना) बिना (न भाति) शोभित नहीं होता है। भावार्थ-- जिस प्रकार अनेक प्रकार के फूलों का ढेर लगाया और वे सब यदि सुवास रहिन हों तो उनका कोई मुल्य नहीं. शोभा नहीं। उसी प्रकार संसार में मनुष्य के पास यदि धन नहीं हो तो अन्य सब गुणों का कोई मूल्य नहीं ।।६।। विस्तारयन्ति ये कोति स्वकीयोपाजितर्द्धनै । धन्यास्तयेव संसारे चन्द्रकान्तिमिवोज्वलाम् ॥१०॥
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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