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________________ श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद ] अन्वयार्थ--(सद्धर्म तीर्थेशं) उत्तम धर्म तीर्थ के प्रवर्तक (मुक्तिद) मुक्ति को देने बाले (धर्म) धर्मनाथ प्रभु को (अहम् ) मैं (संभजामि) स्तुत करता हूँ अर्थात् उनका कीर्तन स्तवन करता हूँ । पुन: (शान्तदान्तै:) शान्त और दान्त पुरुषों के द्वारा (समाश्रितं) सेवित ऐसे (शान्तिदं) परमशान्ति को प्रदान करने वाले (शान्तीशं) शान्तिनाथ भगवान को (वन्दे) नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-जिनकी कषायें शान्त हो चुकी है वे शान्त हैं और जो इन्द्रियों का दमन कर चुके हैं बे दान्त हैं ऐसे शान्त और दान्त गणधरादि मुनि पुङ्गवों के द्वारा भी जो सेवित हैं उन श्री गाविशु की स्तुति यहाँ कार्य परमेष्ठी अपनी यात्मशान्ति के लिये करते हैं ।।६।। कुन्थु कुन्थ्यादि जन्तूनां रक्षणे चतुरोत्तमम् । अरप्रभु कृतानन्दं नमामि गुणनायकम् ॥ १० ॥ अन्वयार्थ--जो (कुन्थ्वादिजन्तूनां) कुन्थु आदि जीवों का (रक्षणे) रक्षण करने में (चतुरोत्तमम्) परभ कुशल हैं अर्थात् सावधान हैं ऐसे (कुन्थु) कुन्थुनाथ को तथा (कृतानन्द) अानन्द अर्थात् अनन्त सुख को जो प्राप्त कर चुके हैं और (गुणनायक) गुणों के अभिनेता अधिष्ठाता हैं ऐसे श्री (अरप्रभु) अरनाथ भगवान को (नमामि) मैं नमस्कार करता हूँ।। भावार्य--प्राणीमात्र का रक्षण और हितकरने वाले ऐसे श्री कुन्धुनाथ भगवान तथा रत्नत्रयादि गुणों के अधिष्ठाता अनन्त सुख के धारी श्री अरनाथ भगवान को आचार्य श्री अक्षय सुख की प्राप्ति के लिये नमस्कार करते हैं ॥ १० ॥ मल्लि सन्मल्लिकादामसुगन्धोत्तमविग्रहम् । इन्द्रनीलप्रभं वन्दे सुब्रतं मुनि सुवतम् ॥ ११ ॥ अन्वयार्थ--(सन्मग्निकादाम-) मल्लि पुष्प की माला के समान (सुगन्धोत्तमविग्रहम् ) सुगन्धित उत्तम शरीर के धारी (मल्लिं) श्री मल्लिनाथ भगवान को तथा (सुव्रतं) थंष्ठ अहिंसादि महावतों के धारी (इन्द्रनीलप्नभं) इन्द्रनीलमरिण के समान कान्ति के धारी [मुनिसुव्रतं श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान को [वन्दे] मैं नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-निर्मल प्रात्म- परिणामों का प्रभाव जड़ शरीर पर भी पड़ता है। विशुद्ध प्रात्मपरिणामों से शरीर भी सुगन्धित और कान्तिमय हो जाता है । तीर्थंकरों का शरीर जन्म से ही सुगन्धित और कान्तियुक्त होता है क्योंकि षोडश कारण भावना तथा तीव्र परोप कार की भावना से वे युक्त होते हैं । बेला के फूलों की माला के समान सुगन्धित उत्तम शरीर को धारण करने वाले श्री मल्लिनाथ भगवान तथा अहिंसादि उत्तम व्रतों के अधिष्ठाता, इन्द्रनील मणि के समान कान्तिमान शरीर के धारी मुनिसुव्रत नाथ भगवान को आचार्य श्री उन गुणों को प्राप्ति के लिये नमस्कार करते हैं ।। ११ ।।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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