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________________ श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद ] [१७५ त्याग कर धर्मध्यान पूर्वक कषाय और शरीर को कृष करते हुए महामन्त्र गमोकार का जाप कारते हुए प्राण छोड़ना चाहिए ।।७१।। एवं गुणवत्त त्रेधा, शिक्षाप्रतचतुष्टयम् । शर्मदंसूरिभिः प्रोक्त भव्यानांशीलसप्तकम् ॥७३॥ अन्धयार्थ- (एवं) इस प्रकार और भी (धा) तीन प्रकार (गुणवतं) गुणवत, (चतुष्टयम् ) चार (शिक्षाव्रतम) शिक्षाक्त (सूरिभिः) प्राचार्य द्वारा (प्रोक्तम) कथित (भव्यानां) भव्यों को (शर्मदम् ) सुख करने वाले (शीलसप्तकम् ) सप्तशीलवत (प्रोक्तम् ) कहे गये हैं। भावार्थ---तीन गुण व्रत और चार शिक्षाबत ये ७ शीलन्नत कहलाते हैं ये व्रत सुख प्रदाता और दुःखहर्ता हैं ।।७३ ।।। इत्युच्चजिनभाषितं शुभतरं स्वमोक्षलक्ष्मीकरम् । ये धर्म प्रतिपालयन्ति सुधियो धर्मानुरागान्विताः॥ ते भव्यास्त्रिदशादि सौख्यमतुलं संप्राप्य रत्नत्रयात् । पश्चाद्यान्ति शिवालयं सुखमयं श्रीबोधसिन्धुस्तुतम् ॥७४।। अन्वयार्थ---(इति) इस प्रकार (ये) जो (धर्मानुरागान्विताः) धर्मानुरागी (सुधिय) बुद्धिमान (जिनभाषितम्) जिनभगवान से कहा हुआ (शुभतरम् ) पवित्र (स्वर्मोक्षलक्ष्मीकरम्) स्वर्ग और मोक्ष की लक्ष्मी को देने वाला (धर्मम ) धर्म (प्रतिपालयन्ति पालन करते हैं. (ते) वे (भव्याः) भव्य (रत्नत्रयात् ) रत्नत्रय से (त्रिदशादिसौख्यम् ) देबेन्द्रों के सुख (अतुलं) अतुलनीय (सौख्यं) सुख (सम्प्राप्य । प्राप्तकर (पश्चात्) तदनन्तर (श्रीबोधसिन्धुस्तुतम ) गणधरादिस्तुत्य (मुखमयम ) सुखस्वरूप (शिवालयम ) मोक्षधाम को (यान्ति) जाते हैं। भावार्थ- उपर्युक्त धर्म का जो भव्यप्राणी पालन करते हैं वे स्वर्गमोक्ष के सुख प्राप्त करते हैं | जिनेन्द्र-सर्वज्ञ कथित धर्म ही वास्तविक सच्चा, दयामयी धर्म है । इसमें सर्वत्र जीवरक्षण प्रधान है अतः "अहिंसा परमोधर्मः" ही वास्तविक धर्म है। इससे ही जीव संसार दुःखों त्राण पाता है और अक्षय सुख प्राप्त करता है ।।७४।। इत्येवंगुरुणा तेन प्रोक्तं धर्म जिनेशिनाम् । श्रुत्वा श्रीपालराजस्त समुत्थायकृताञ्जलिः ॥७॥ भक्तितस्तं मुनि नत्वा सुगुप्ताचार्यमुत्तमम् । भो स्वामिस्त्रिजगन्नाथ मुक्त्वा श्रीमज्जिनेश्वरम् ॥७६।।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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