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________________ श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद] की प्राप्ति के लिए परिग्रह का प्रमाण अनिवार्य रूप से करना चाहिए ।।३।। संतोषेण भवेन्नित्यं सत्सुखं भव्यदेहिनाम् । युक्त पद्माकराणां हि प्रकाशं कुरुते रविः ॥३४।। अन्वयार्थ-(भव्यदेहिनाम्) भव्य जीवों को (सन्तोषेण) से (नित्यम् ) सतत (सत्सुखम्) उत्तमसुख (भवेत्) होता है (युक्तम् ) ठीक ही है (हि) निश्चय से (पद्माकरारणाम.) कमलों को (रविः) सूर्य ही (प्रकाशम ) प्रकाशित-प्रफुल्ल (कुरुते ) करता है। भावार्थ--जिस प्रकार पद्मसमूहों को सूर्य का प्रकाश ही प्रफुल्ल करता है उसी प्रकार सन्तोष ही भव्य जीवो को सच्चा सुख दे सकता है। मत्वेवं धनधान्यादि चतुष्पदपरिग्रहे । परिमाणं प्रकर्त्तव्यं सदा सद्भिः सुखाथिभिः ॥३५॥ अन्वयार्थ--(एवं) इस प्रकार (मत्या) मानकर (सुखाथिभिः) सुख चाहने वाले (सद्भिः) सत्पुरुषों को (सदा) हमेशा (धन धान्यादि) धन, धान्य आदि का (चतुष्पद) गाय, भैस, हाथी घोडा आदि (परिग्रहे) परिग्रह के सम्बन्ध में (परिमाणं) सीमा (प्रकर्त्तव्यम) करना चाहिए। मावार्थ--उपर्युक्त नियमानुसार सुखेच्छ ओं को दश प्रकार के-धन, धान्य, गाय, भैस, गज, अश्वादि के विषय में प्रमाण करना चाहिए ।।३५।। एतान्यण व्रतान्युच्चैः श्रावकानां भवन्त्यलम् । पञ्चप्राहुबुधा राज्यभुक्ति षष्ठमण व्रतम् ॥३६।। अन्वयार्थ—(श्रावकानां) श्रावकों के (एतानि) ये (पञ्च) पांच (अण व्रतानि) अण व्रत (भवन्ति) होते हैं (इति) इस प्रकार (अलम ) यह पर्याप्त है (बुधाः) विद्वान (षष्ठम् ) छठवाँ (अण व्रतम ) अण प्रत (रात्रि प्रभुक्ति) रात में भोजन नहीं करना (प्राहु) कहा है। भावार्थ-श्रावकों के उपयुक्त पाँच अणु व्रत हैं। छठब रात्रिभोजन त्याग भी अणु व्रत है ।।३६॥ पतत्-कीट पतङ्गार्भक्षणाग्निशिभोजनम् । त्याज्यं पापप्रदं नित्यं मांसवत विशुद्धये ॥३७॥ अन्वयार्थ .... (निशिभोजनम ) रात्रि भोजन (भक्षणात् ) करने से (कोट पतङ्गाद्य :पतत्) सूक्ष्म जन्तु, पतङ्गादिपडने से मांसभक्षण दोष होता है अत: (मांसत्यागवतविशुद्धये) मांस
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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