SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८] [श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद हो । ज्ञानी यदि चारित्र शून्य हो तो वह कोरा ज्ञान पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकता । चारित्र की परिपक्वता ज्ञान की पूर्णता का समर्थ कारण है । अत: चारित्र अत्यावश्यक है ।।८।। इतिज्ञानाधिकारः।। अब सम्यक् चारित्र का स्वरूप कहते हैं --- चारित्रं च द्विधा प्रोक्तं मुनि श्रावकगोचरम् । मुनीनां महदित्युच्चैः श्राधकाणामण च्यते ॥१॥ अन्वयार्थ-(मुनि श्रावक गोचरम् ) दिगम्बर साधु और श्रावक को अपेक्षा (चारि. त्रम्) सम्यक् चारित्र (द्विधा) दो प्रकार का (प्रोक्तम ) कहा है (मुनीनाम ) मुनियों का चारित्र (महत ) महायत रूप (च) और (श्रावका णाम ) श्रावकों का (अण :) अनुव्रतरूप (इति) इस प्रकार (उच्चैः) विशेषज्ञों द्वारा (उच्यते) कहा गया है ।।१।। मावार्थ-चारित्र के दो भेद हैं। १. महावत रूप और २. अण प्रत रूप । मुनियों का चारित्र महाव्रत रूप है और श्रावकों का प्रण व्रत रूप । अर्थात सकल संयम और देशसंयम के भेद से चार दो प्रकार है । छठय गुर स्यात सकल संयम चारित्र होता है और पांचवें गुणस्थान में देशसंयम-अण अतरूप चारित्र होता है ।।१।। हिसादिपञ्चपापानां सर्वथा त्यागतो महत् । मुनीनां शुद्धचारित्रमुत्कृष्ट मुक्तिसाधनम् ॥२॥ अन्वयार्थ— (हिंसादिपञ्चमाणानाम् ) हिंसादि पांच पापों का (सर्वथा) पूर्णरूप से त्यागत:) त्याग करने से (मुनीनाम ) मुनियों के (महत्) महाव्रतरूप (मुक्तिसाधनम ) साक्षात् मुक्ति का साधक (शुद्ध) निर्मल, निरतिकार (उत्कृष्टम् ) पूर्ण (चारित्रम ) चारित्र (भवति) होता है। भावार्थ---हिंसा, भूट, चोरी, अब्रह्म और मूा-परिग्रह ये पाँच पाप हैं । इन पांचों पापों का नवकोटि (मन, वचन. काय कृत कारित, अनुमोदना = ३४ ३ =E) से पूर्ण रूप से त्याग करना महायत कहलाता है। मुनिराज ही महाव्रतधारी होते हैं। निग्रन्थ वेषधारी हुए बिना सकल चारित्र पालन हो नहीं सकता । शुद्ध निश्चय चारित्र ही साक्षात् मुक्ति का साधक है । व्यवहार चारित्र निश्चय चारित्र का साधक है । मुमुक्षु को सकलसंयम शुद्ध चारित्र धारण करना ही होगा अन्धया न आत्मशुद्धि हो सकता है और न मुक्ति हो । आजकाल जो एकमात्र ज्ञान का महत्व बतलाकर चारित्र से स्वयं विमुख हो रहे हैं और भोली समाज को भी चारित्र विहीन बनाने की असफल चेष्टा करते हैं यह उनकी नितान्त भूल है । समाज को भी सावधान रहना चाहिए सोनगढी और जयपुर ट्रस्ट के लोगों से । ये दोनों एक ही हैं एकान्तवाद सांख्य मत के प्रचारक | ये अनेकान्त के नाम पर चावीक सिद्धान्त का पोषण करना चाहते हैं जो निध्यात्य है और अनन्त संसार का कारण है ।।२।।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy