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________________ १२८] [श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद को भी कष्ट देने वाले हैं । विरोधियों का दमन करने वाले भी हैं । अपराधी को दण्डदाता भी हैं। परन्तु अपनी ही निर्दोष-निरपराध पुत्री को भीषण ताप देने वाला मुझको छोड़कर अन्य कोई नहीं है। मैं ही एकमात्र पापो हूँ जो अपनी पुत्री को जानकर कष्ट में डाला है ।।१२।। पुन: सोचता है भूताविष्टो नरश्चापि वेत्ति किञ्चिद्धिताहितम् । अहं किञ्चिन् न जानामि मूढात्मा पाप कर्मणा ॥१२६।। अन्वयार्थ -(च) और भी (भूताविष्टो) भूत-प्रेत को बाधा वाला (अपि) भी (नर:) मनुष्य (किञ्चित) कुछ (हिताहितम्) हित और अहित को (वेत्ति) जानता है, किन्तु (मूढात्मा) मूर्ख बुद्धिहीन (अहं) मैं (पापकर्मणा) पापकर्म से (किञ्चिन्) कुछ भी (न) नहीं (जानामि) जानता हूँ | भावार्थ-लोक में देखा जाता है, जिस किसी मनुष्य को भूत, प्रेत, पिशाच की वाधा होती है, वह बेहोश हो जाता है, तो भी थोडा-बहुत विवेक रहता है । अर्थात् कभी सही और कभी गलत जानता है । राजा सोच रहा है कि मैं तो उस पिशाच ग्रस्त से भी अधिक मुढ हैं-पागल हो रहा हूँ। मेरे शिर पर पापकर्म का भूत चढा है। मैं उसी के वशवर्ती हो रहा हं। पापकर्म पिशाचों का भी पिशाच है । इसी से मेरी बुद्धि सर्वथा नष्ट हो गई है। परन्तु अब क्या करू ? मात्र पश्चात्ताप ही शेष है-ठीक ही है - ।।१२६।। यो विचारंबिनाकार्य करोति मतिजितः । पश्चात्तापेन पापेन तप्यते स यथाहकम् ।।१३०।। अन्वयार्थ – (यः) जो (मतिबर्जितः बुद्धिहीन (विचार) सोचे (बिना) बिना (कार्य) काम (करोति) करता है (स) नई (पश्चात्तापेन) पश्चात्तापरूप (पापेन) पाप से (तप्यते) ताधित होता है (यथा) जिस प्रकार (अहकाम्) मैं हूँ। भावार्थ - मैंने इतना परिथम किया। धन खर्च किया। फल क्या मिला ? हाथ मलना और शिर धुनना । भूपति सोचता है ठीक ही है "विना विचारे जो करे सो पाछे पछताय" बिना-सोचे-विचारे जो काम करता है वह अन्त में पश्चात्ताप की ज्वाला में जलता ही है। यही दशा मेरी है। मेरे जैसा और कौन होगा ? मैं पश्चात्ताप से मृत समान हो रहा है। वास्तव में कर्मवली के सामने किसी का वश नहीं चलता ।।१३०।। कहा भी है शुभाशुभं भवेन्नित्यं जन्तूनां कर्मयाकतः । किं करोत्यथवा लोके पिता-माता सु बान्धवाः ।।१३१।। अन्वयार्थ (नित्यं) सदैव (जन्तूनां) प्राणियों के (कर्मविपाकतः) कर्मोदय मे
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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