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[श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद
नेत्रपुष्पोज्वला पुण्यतरुवल्लीमिवोत्तमाम् । कल्याणकारिणीमत्वा कल्यागोचित विग्रहाम् ॥४॥ पिताप्रारणसुतेत्वं च भगिनीव वरंवद ।
यस्तुभ्यं रोचते भद्र तस्मै त्वां संददाम्यहम् ।।५।।
अन्वयार्थ-(नविनाश्रिताम् ) नवीन योवन को पाने वालों (शान्ताम् ) कामविकार रहित (कामनाङ्गीम् ) पुष्पवत् कोमन अङ्ग वाली(सुपाड्या) उत्तम रूप राशि सहित (करपल्ल यशोभिताम् ) हाथ मप पत्रों से सुसज्जित (नेत्र पुष्पोज्ज्वलाम् ) कमल के समान उज्ज्वल नयन वाली (पुण्यतरुवल्लीब) पुण्य रूप वक्ष की लता समान (उत्तमाम) उत्तम (कल्याणकारिणोम) कल्यागा करने वाली (उचित) योग्य (कल्याण विग्रहाम्) सुखकारी शरीर बाली (ताम् ) उम (सुताम् ) पुत्रि को (विलोक्य) देखकर (पिता) पिता प्रजापाल ने कहा (प्राणसुते) हे प्राणप्रिय पुत्रि: (त्वम्) तुम (भगिनीव) अपनी बड़ी बहिन के समान वरं) वर (वद) कहो (भद्र ) हे कुलीन (य:) जो (तुभ्यम) तमको (रोचते) अच्छा लगे (तस्म) उसी के लिए (त्वाम) तुमको (अहम्) मैं (संददामि) विधिवत् सम्यक् रूप से देता हूँ।
भावार्थ- .महाराज प्रजापाल ने गन्धोदक लेने के उपरान्त उस कन्या की ओर दृष्टि डाली । वह पुर्ण यौवन अवस्था को प्राप्त हो चुकी है तो भी शान्त है अर्थात निर्विकार थी । उसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग अत्यन्त कोमल-सुकुमार थे। उसके अङ्ग अङ्ग से सौन्दर्य फूट रहा था। शिरीष सुमवत् समस्त शरीर सुकुमार था । उसके हाथ कोमल पने के समान अरुण थे । दोनों नयन कमल पुष्प सदृश थे। वह देखने में उत्तम कल्पवल्ली के समान ही प्रतीत होती थी। उसका दर्शनमात्र कल्याणकारक था । गुण और स्प का मणि काञ्चनबनु संयोग फब कर बैठा था। इस प्रकार अपनी पुत्री को विवाह योग्य देख बार पिता ने उससे कहा, बेटी तुम भी अपनी बड़ी बहिन सुरसुन्दरी के समान अपना वर चुनकर वताओं। तुम जिसे चाहोगी उसी के साथ में तुम्हारा विधिपूर्वक विवाह कर देगा। इच्छानुसार वर पाकर तुम्हें सुग्वी देखना चाहता हूँ। तुम कल्याणरूपा हो । इसी प्रकार का गुणरूप वर भी मांगो ।।८६ से ८५।।
तन्निशम्यपितुर्वाक्यं तदा मदनसुन्दरी । धर्मयुक्तिविचारज्ञा शास्त्रसिन्धुमहातरी ॥८६॥ अहोतातः कुलोत्पन्ना कन्यातो नैवयोग्यता ।
यहरोयाच्यते देवः स्वेच्छ्याभोमहीपते ।।७।। अन्वयार्थ -उस विषय को (पितुर्वाक्यम्) पिता के बचन को (निणम्य) सुनकर (तदा) तब (धर्मयुक्तिविचारज्ञा) धर्म और युक्ति के विचार में निपुण (शास्त्रसिन्धु महातरी) शास्त्र समुद्र को पार करने वाली महानोका रूप (मदन सुन्दरी) मदन सुन्दरी ने कहा (देवः) हे देव (भोमहीपतेः) हे नृपति (कुलोत्पन्न कन्यातो) श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न कन्या को (नैव