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________________ १०८ ] [श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद लिये चतुबिध दानादि को (परमेष्ठिनाम्) पञ्चपरमेष्ठियों के (जिनस्नानम् ) अभिषेक (पूजनम् ) पूजा के विधानों को एवं शृणोतिस्म सती तत्र द्वादशैव शुभावहाः । अनुप्रेक्षास्तपोभेदान्तर्बाह्यद्विषविधान् ॥७॥ अन्वयार्थ - (सती) वह साध्वी कुमारी (तत्र) उन गुरुदेव के यहाँ (शुभावहाः) सुखप्रदायक (द्वादशैब) बारह भावनाओं एवं (तपोभेदान्) तप के भेद (अन्तर्बाह्य द्विषड्विधान्) अन्तरङ्ग और वाह्य के भेद वाले १२ तपों को (श्रृणोतिस्म् ) सुनती थी। भावार्थ-उस सुशील कन्या मदनसुन्दरी ने उन गुरुराज के पास सुखदायक १२ भावनाओं का श्रवण किया । बारह भावनाएँ १. अनित्य २. अशरण ३. संसार ४. एकत्व ५. अन्यत्व ६. अचि ७. आस्त्रव ८. संवर. निर्जरा १०. लोक ११. बोधि दुर्लभ और १२. धर्म ये बारह अनुप्रक्षाएँ हैं। १. अनित्य संसार क्षणभंगुर है। धन यौवन रूपादि सब बिजली की भांति क्षणभर में विलीन हो जाने वाले हैं ! कोई भी वस्तु स्थिर एक रूप नहीं हैं । इस प्रकार विचार करना अनित्य भावना है। २. अशरण भावना-संसार में कोई शरण नहीं है। मृत्यु से बचाने वाला कोई भी नहीं है । जिस प्रकार सिंह के मुख में पड़े हरिण को कोई नहीं बचा सकता उसी प्रकार विचार करना अशरण भावना है। ३. संसार भावना-चतुर्गति रूप संसार में जीव ८० लाख योनियों में भटकता है । सर्वत्र दुःख ही दुःख भरा है कहीं भी शान्ति नहीं मिलती। यह संसार की प्रसारता का चिन्तन करना संसार भावना है। ४. एकात्व भावना- जीव अकेला ही शुभाशुभ कर्मों का कर्ता है और स्वयं ही उनके सुख-दुःख रूप फल का भोक्ता है । अन्य कोई भी बदा नहीं सकता। इस प्रकार विचार कर स्वयं में स्वयं को स्थिर करना । ५. अन्यत्व भावना--ऐसा विचार करना कि मेरा किसी से कोई सम्बन्ध नहीं है, सब से मैं पृथक निराला हूँ और संसार के सर्व पदार्थ मुझ से भिन्न हैं । मैं एक शुद्ध चैतन्य स्वरूप हूँ। ६.अशुचि भावना---शरीर का स्वभाव गलन पूरन है, यह मल मूत्र, रक्त, मांस का आगार है । चमड़े से लिपटा सोहता है भीतर महानिद्य पदार्थों से भरा है । यह कभी भी शुचि नहीं हो सकता है । इसमें प्रीति करना व्यर्थ है । ७. प्रास्त्रव भावना - ऐसा विचार करना कि मन वचन काय के निमित्त से प्रात्म
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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