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________________ M श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद ] [१०७ द्वादशाङ्ग के समस्त विषयों में प्रविष्ट होने की योग्यता या जाती है। तदनन्तर उसने मुन्द शास्त्र अलङ्कार शास्त्रों का भी विशेष लगन-एकाग्रता से अध्ययन किया । इसके बाद तत्त्व प्रतिपादक काव्य शास्त्रों को पढ़ा । पुनः षड्द्रव्य पञ्चास्तिकाय, सप्त तत्वों का वर्णन करने वाले गास्त्रों का एकाग्रचित से मनन-चिन्तन किया। तत्त्त्रपरिज्ञान कर लेने से उसकी धर्मनिष्ठा विशेष प्रगाढ़ हो गई थी।॥६५-६६।। पञ्चास्तिकायषड्भेदान् पदार्थन्नवनिर्मलान् । अष्टाङ्गसार सम्यक्त्वं वेत्तिस्मज्ञानमष्टधा ॥६७॥ अन्वयार्थ - (स.) उस मदनसुन्दरी ने (पञ्चास्तिकायषड्भेदान्) पञ्चअस्तिकाय के भेदों को (निर्मलान ) निर्मल (नवपदार्थान्) नव पदार्थों को (सम्यक्त्वसारं) सम्यग्दर्शन के सारभूत (अष्टाङ्गम्) आठ अङ्गों को (अष्टधा) आठ प्रकार के (ज्ञानम् ) सम्यग्जान को (वेत्तिस्म) ज्ञात किया। भावार्थ -इसके बाद उस मदनसुन्दरी ने पञ्चास्तिकाय एवं षड्दथ्यों के भेदों को तथा नव पदार्थों का समय ज्ञान प्राप्त किया। अर्थात् भले प्रकार से अध्ययन किया । सम्यग्दर्शन के निशंकित आदि अङ्गों को अच्छी तरह से समझा, ज्ञान मार्गरगा के पाठ भेद १. मतिज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मनःपर्यय ५. केवलज्ञान, ६. कुमति, ७. कुथुत और ८. बिभंगावधि का भले प्रकार से अध्ययन किया। पाठ अङ्गों का स्वरूप प्रथम परिच्छेद में लिखा जा चुका है । इस प्रकार सकल शास्त्रों का अध्ययन किया ।।६७।। श्रावकाचारमप्युच्चैरभिधानं निधानवत् । कर्मणां प्रकृतयस्सर्वाः जानातिस्मगुरगोज्वला ॥६॥ अन्वयार्थ - पुन: (गुणोज्वला) उत्तम गुणों से युक्त वह कन्या (श्रावकाचारम) श्रावका वार को (उचैरभिधानम्) विशेष सावधानी से (निधानवत्) खजाने के समान (सर्वाःकर्मरणांप्रकृतय.) सम्पूर्ण कर्म प्रकृतियों को (अपि) भो (जानातिस्म) जानती थी। भावार्थ-- इसके अतिरक्त उक्त गुणों से मण्डित कन्या ने पवित्र भावों से श्रावकाचार ग्रन्थों का भी विशेष रुचि से अध्ययन किया। समस्तकर्म प्रकृतियों का भी अवबोध किया अर्थात् कर्म प्रकृति प्राभूत ग्रन्थों का सम्यक् प्रकार से अध्ययन किया ॥६८।। चतुर्गतिमहाभवान् गुणस्थानानिनिस्तुषम् । पादानं जिनस्नान पूजनं परमेष्ठिनाम् ।।६।। अन्वयार्थ--(चतुर्गति महाभेदान्) चारों गतियों के विशेष भेद प्रभेदों को (निस्तुषम् ) पूर्ण रूप से (गुणस्थानानि) गुणस्थानों के भेद लक्षणादि को (पावदानम् ) विविध पात्रों के
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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