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________________ श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद ] J१०५ लिए बिना किसी भी वस्तु को ग्रहण नहीं करना अचौर्याण यत वहा जाता है। स्वपत्नी सिवाय अन्य समस्त स्त्रियों को माता बहिन व पुत्री समान समझना तथा इसी प्रकार महिलाओं को अपने विवाहित पुरुष, पति के अतिरिक्त अन्य पुरुषों को पिता भाई व पुत्र तुल्य देखना ब्रह्मचर्य अण व्रत है । क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण धन धान्य, दास दासी, कुव्य, (वस्त्र) भाण्ड ये दश प्रकार ने वाह्य परिग्रह हैं। इनकी सीमा करना अर्थात् प्रमाण करना कि इससे अधिक स्वीकार नहीं करेंगे वह परिग्रह परिमाण अण व्रत कहलाता है। गार्हस्थ्य धर्म में इनका पालन करना अनिवार्य है ।।६२।। तथा ओर भी-- रात्रिभुक्तिपरित्यागमाटो मलगुणान् शभान् । कन्दमूलादिकं त्याज्यं, चर्मवारिघृतौज्झनम् ॥६३॥ अन्वयार्थ --(रात्रिभुक्ति परित्यागम् ) रात्रि भोजन का सतत त्याग करना (शुभान) श्रेष्ठ (अष्टौमूलगुणान्) मूल गुणों--प्राउ मूलगुरगों को धारग वारना (कन्दमूलादिकम) आलु गाजर मूली आदि कन्दमूल (न्याज्यम्) त्यागने योग्य हैं। (चमवारिघृतं) चमड़ के चरश बैम आदि में रखे हुए जल धो, तैल होंग आदि का (उज्झनम्) त्याग करना चाहिए । भावार्थ-श्रावक-श्राविकाओं को सदंब रात्रि भोजन का सर्वथा त्याग करना चाहिए । आठ मूलगुणों को धारण करना अनिवार्य है । मूल का अर्थ जड़ है जिस प्रकार जड़ के अभाव में वक्ष की स्थिति-उत्पत्ति वद्धि कुछ भी नही हो सकती उसी प्रकार मूलगुणों के बिना श्रावक, श्रावक ही नहीं बन सकता । पाँच प्रण व्रतों का धारण करना, ६. रात्रि भोजन त्याग ७. कन्द मूल त्याग और ८.चमड़े में रस्ने हए घी तैल, पानी, हींग नमक आदि का त्याग । इस प्रकार ये पाठ मूल गुण यहाँ प्राचार्य श्री सकलकीति महाराज ने कहे हैं । श्री समन्तभद्र स्वामी ने पांच अण व्रतों के साथ १. मद्य त्याग २. मांस त्याग ३. मधु त्याग इन तीन को मिलाकर ८ मूलगुण कहे हैं। .. sainire---MYKORAN A T AMERITTALPATTI
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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