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________________ ૨૦૪ [ श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद प्रकार के सैकड़ों पुष्पों से (जिनाधिपम् ) जिनेन्द्र भगवान् की (समभ्यर्ष ) सम्यक प्रकार पूजा करके ( तत्वा) नमस्कार कर (स्तुत्वा ) स्तुति करके (पुनः) फिर ( वाला) उस मदन सुन्दरी बालिका ने ( यमराह्नवम् ) यमधर नाम के ( मुनि) मुनिराज को ( नमस्कृत्य ) नमस्कार करके ( यमधर ) उन यमधर मुनि महाराज के पास ( शर्मदम् ) शान्ति प्रदायक ( धम्मंम् ) धर्म को (सुश्राव ) सुना । मात्रार्थ - धर्मलंकार अलंकृत बहु लघु कन्या मदनसुन्दरी प्रातःक्रिया कर जिनदर्शन को गयी। वह स्वम्भूतिलक नामक जिनालय पहुँची । वह जिनमन्दिर धर्मात्माश्र का तिलक स्वरूप था । वह आनन्द से पूरित भक्तिभाव से भरी उस जिनालय में जाकर जिन पूजा में तत्पर हुयी । उसने सुन्दर शुभ्र वस्त्र एवं कीमती सुन्दर आभरण धारण किये। जल चन्दन प्रक्षत चरु दीप, धूप फलादि के साथ नाना प्रकार के सैकड़ों सुगन्धित प्रफुल्ल पुष्पों से जिनेश्वर की पूजा की । प्रचकर नमस्कार किया पुनः मधुर स्वर से स्तोत्र पाठ किया 1 तदनन्तर जिनालय में विराजे यमधर नाम के मुनिराज को नमस्कार किया उनके चरण सानिध्य में बंट कर शान्ति सुखदायक जिनधर्म के स्वरूप को श्रवण किया ।। ५६, ६०, ६१॥ श्रहिंसालक्षणम् जैनमसत्यं परिवर्जनम् । प्रचीर्यं ब्रह्मचर्यं च परिमाणं परिग्रहम् ||६२ ॥ श्रन्वयार्थ -- ( अहिंसालक्षणं) जीवबध रहित लक्षण वाले (असत्यं परिवर्जनम् ) असत्य भाषण का परित्याग करना ( प्रचीर्य) चोरी नहीं करना ( ब्रह्मचर्य) एक देश ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना (च) और ( परिग्रह परिमाणम् ) परिग्रह की सीमा करना ( जैनम् ) जैनधर्म है । भावार्थ - हिंसा झूठ चोरी, कुशील और परिग्रह वे पाँच पाप हैं। इनका एक देशस्थूल रूप से त्याग करना पाँच अणुव्रत कहलाते हैं । प्राणियों के बध का त्याग करना उनका रक्षण करना हिंसाण व्रत कहलाता है । असत्य भाषण का त्याग करना अर्थात् बध, बन्धन दण्ड प्राप्त हो इस प्रकार का असत्य भाषण नहीं करना सत्याण व्रत है। मालिक की आज्ञा
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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