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________________ ॐ *4XXX दारिया दिवा, चोरिचि यहिता परिणीता य । अण्णदा वाहिंगइयाहि रमति, रायणियाए पो बाइति, इतरी पोचं दिती ये सम्पत्तासमान-1 विलग्गा, रण्णा सारियं, मका पम्वतिया । एवंविहं दुगुंछाफलं ॥ तिचारा पूर्णि क परपासस्पससाए-पाइलिपुत्ने चाणको, चंदओत्तेण मिच्छुयाण वित्ती इरिता, ते तस्स धम्म कहेंति, राया तूसाति, ॥२८॥ चाणकं पलोएति, ण पससनिधि ण देति, तेहि चाणकमज्जा ओलग्गति, तीए सो करण कारितो, तेहि कहिते मणति-सुमा सितंति, रण्णा संच अण्णं च दिणं, चितियदिवस चाणको रायाण मणति-कीम दिण्णं !, भणति-तुमहिं पसंसित, सो| मगति-मए पसैसित अहो सवारंमपवमा किह लोगवत्तियशवणगाणि करेंतिचि, पच्छा ठितो, कतो एरिसगाई, तम्हा ण कातव्वा॥ संघवे सो चैव सोरट्ठजो सडो। एवं पंचातियारविसुद्धं संमत्तं मूलं गुणसताण, मज्जादातिकम पुण पकरतो अतिसंकिलिहपरिणामेण सम्बत्व परिचयति धम्ममिति। वारं मूलं परिहाणं, आहारो भायण णिही । दुवस्सस्स धम्मस्स, सम्मतं | परिकत्तियं ॥ १।। एवमिदाणिं सुद्धे संमचे वतावि गेहेतब्वा, तत्थ विसपमुहपिवासाए अहवा घवजणाणुराएण अवतो पावीस परिसहे दुस्सहे साहिउँ जदि न करेति विसुद्ध सम्म अतिदुकरं तवचरण सोज्जा मिहिषम, णमझो होति धम्मस्स। तस्थ पहम प्लगपाणातिवातं समणोवासो पच्चक्वाति (२०) इत्यादि, चूलगपाला दियादी, सेसि मज्जा- ॥२८॥ यातिककमेण पातो धूलगपाणाविबातो, से म पाणतिवाते दुबिहे-संकप्पयो य आरंमओ य, संकप्पो पचखाति, जो आर-15 दामतो , अभिसंचिन्त णिवगही ण मारेतीत्यर्थः, सवरा हिंपि जहसचिसारंमतोशिकावं, सारमे वारची णियमा तेण न पञ्चस्खा EXXX 4AA
SR No.090463
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1986
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Story, & agam_aavashyak
File Size9 MB
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