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________________ कालमा 45 अतिक्रमणा है पारस पूर्वन्यस्तस्य इमस्य च विमासा- मृतौ पः ॥ १२.६७ ॥ १४७८ ॥ दिसामोहो संजातो, अहवा मूढो दिसं पहुब्ध ध्ययने अजवर्ण , कई 1, उच्यते, पढम उत्तराहुत्तेण ठातव्वं, मो पुण पुन्नाहुत्तो पढम ठायति, अजायणेसुवि पढम चउच्चीसत्यो , सो पुण मूढचणतो दुमपुष्फिर्य मामण्णापुब्वयं वा कति, फूडमेत्र वंजणामिलावेण भासतो कट्ठति, फुडफडेचा वा गेहति, एवं न सुज्मति, संकनोत्ति पुच्वं उत्तराहुसेण ठातुं तना पुच्चाहुत्तेण ठानत्वं, सो पुण उत्तराओ अबराहुत्तो ठायति, अज्मपणेसुवि | घडवीसत्थानो अण्णं चेव मुड़ियायारगादि अज्झयणं संकमेति, कि अमतीए दिसाए ठितो ण वत्ति, अजायणेचि कि कवित ण ति, इंदियविसए य अमणुण्णप्ति अणिटो पत्तो जया सौतिदिए रुदितं वतरेण वा अट्टहास कतं रूवे पिमीसिगादि विक| वरूर्व वा गंधे कलेक्गदिगंधो रसस्तत्रैव स्पर्श अग्निज्वालादि, अहवा इंसु रागं गच्छति अणिडेसु इंदियविसएसु दोस, एवमादि| उघषातवज्जितं कालं घेत्तुं कालनिवेदणाए गुरुसमी गच्छंतस्स इमं मणति- जो वच्च० ॥१२-१८ ॥ १४७९ ॥ एसा महबाहुकता गाथा, सीए अदिदेमे कतेवि सिद्धमेणग्वमासमणो पुष्पमणितं अविदेसं वाखाणेति-आवासि ॥१॥ | (सिद्ध०) जदि णितो आवस्मितं न करगति पसिनो वा णिस्सीहितं, अहदा अकरणमिति आसज्ज न करेति, कालभूमीओ गुरु-| समीवं पद्वितस्स अदि अंतरेण माणमज्जारादी छिदंति, मेसा पदा पुष्वमणिता । एतेसु सम्वेसु कालवधो भवति । गोणादि. | ॥२॥ (सिद्ध०) पढम ता गुरुं आपुच्छित्ता कालभूमि गतो, जदि कालभूमीए गोणं णिसणं संसप्पगा वा उडिसा पेक्सति तो |णिवत्तने, जदि कालं पडिले हितग्स मेण्हंतस्स या णिवेदणाए वा गच्छतस्स कविहसितादीएहिं कालबहो मवनि, कविहमिन नाम | आमासे विकतरूपं मह वानरमरिस हास करेज्ज, सेमा पदा मयत्था । कालग्गाही निवाघानेण गुरुसमीवमागतो- हरिपा० : 39. ॥२३३॥ 23
SR No.090463
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1986
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Story, & agam_aavashyak
File Size9 MB
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