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________________ प्रतिक्रमणा ॥१॥सो पानरजूहवनी चिंता य सोमणा जाता, साधुणा य कहित तेहिं गतिदिएहि,सहस्सारे उववण्णो,सो य साहरितो १९॥18 प्रणिध्याध्ययने &ा संवरेण जोगा संगहिता भवंति, तत्थ पडिवक्खण उदाहरणं-रायगिहे सेणिएणं बद्धमाणसामी पुच्छितो, एक्का देवी न- दमा ॥२०॥ विधि उवदंसेचा गता, का एसत्ति?, सामी भणति-वाणारसीए महमेणो जुष्णसट्ठी, तस्म भज्जा नंदा इति, तीस धूता सिरी, सा ४ वकुमारी वरकपरिवज्जिता, तस्स कोट्ठए चितिए पासस्मामी समोसढो, सिरी पन्चइता, गोवालीए सीसिणिका दिया, सा , संग्रहाः १९-२१ पुर्व उग्गेण विहरिना पच्छा ओसण्णा जाता, हत्थेण पादे धोवति जथा दोषती विमासा, वारिजंती उड्ढेतूण अण्णत्य गता है विभत्ताए बसहीए ठिता, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता चुल्लाहिमवंते पउमे दहे सिरी जाता देवगणिका, एताए ण संवरो कतो, पडिवक्खा कातव्यो, अण्ण भणति- हत्थिणिकारूण वाउक्काएति, साहे सेणिएणं पुच्छितं २०॥ अत्तदोसोवसंहारो कातवो,जदि किीच काहामि तो दुगुणो घो होहितित्ति,तत्य उदाहरण-पारमतीए जरहमित्तो सेट्टी, अणुवरी मज्जा, सावकाणि, जिणदेवो पुत्तो, तस्स रोगो उप्पज्यो, ग तीरति चिगिच्छितुं, वेज्जा भणति-मांस खाहि, सो मेच्छति, सयणपरियणो अम्मापियरो य पुतणेहेणं अणुजाणंति, सो णेच्छति, किह चिररक्षितं वतं मंजामिचिों, उक्तंचचरं प्रविष्टं ज्वलित हुताशनं, न चापि मग्न चिरसंचितं व्रतम् । वर हि मृत्युः परिशुद्धकर्मणान शीलाचस्खलितस बीवितम् ॥१॥ असदोसोपसंहारो कतो, मरामिति सम्वं सावज पञ्चक्ला, कहवि पउणो तहावि पचरुखातं घेव, पम्बन्जा कता, इतो सुहावसाणस्स णाणमुप्पणं जाव सिद्धोचि २१॥ IM२०२॥ सम्वकामेसु विरज्जिसम्वंतत्थ उदाहरणं-उज्जणीए देविलासत्तो राया,तस्स मज्जा अपरत्ता लायणाणाम,अण्णदास SHERERSE%
SR No.090463
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1986
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Story, & agam_aavashyak
File Size9 MB
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