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________________ *%E4% *% प्रतिक्रमणा' पादेय | जाया नाम जे वध नाम पायं वा मूलगुणअमुवा उत्तरगणमुद्धं वा आसि, योगेण वा विसेण वा, जे विमण नोत्रमपरि ध्ययने | आभियोगितं । वन्थपानं खंडाबंड कातूणं विगिचितव्वं, सात्रणा य तहेव, जाणि अतिरित्ताणि वत्धपादाणि कालगते वा पडि मग्गे वा साहारणे वा गहिने जाएज्जा । एत्थ का विगिंचणविधी , चोयओ भणति- अभिओगाविसाणं तहेव खंडाणि कानूण ४ ॥११॥ विगिचणा, मूलगुणअमुद्धस्स वत्थम्म एक बकं कीरति, उत्तरगुणअमुद्धरस दोणि वैकाणि, सुद्धं उज्जुग ठविन्नति, पाते मूलगुणअसुद्धे एगा चीरिंगा दिज्जति, उत्तरगुण अमुझे दोणि दोषिण चीरखंडा पाते छम्मनि, मुदं तुच्छं कीरति, रित्तगीत मणिनं हाति, | आयरिया मणति एवं तुझं मुद्धपि अमुद्धं हाहिति, कह ?, उज्जुग ठवितं एगणं बंकणं मूलगुणअसुद्धं जातं, दोहिं उत्तरगुणअसुद्धं जातं, दुर्वकं वा एगवकं वा होज्जा, एककं वा दुवक का होज्जा, एवं मूलगुणेसु उत्तरगुणा होज्जा, उत्तरगुणेसु मूलगुणा होज्जा, पाएवि एग चीरं निम्गनं मूलगुणभमुद्धं जातं, दोहियि निम्गतेहि सुद्धं जातं, जे य तेहिं वत्थपातेहिं परिभुजतेहिं दोसार है निर्मि भावति होति, तम्हा जे भणमित अजुत्तं, एवं परिद्ववेतव्वं वार्थ मूल असुद्धे एगो गंठी कीरति, उत्तरे दोण्णि, सुद्ध निष्णि, एवं वा वस्थ, पाते मूलगुणासुद्धए अंतो एगा सहिया रहा,उत्तरगुण असुद्धे दोण्णि, सुद्धे तिणि रेहा, एवं जातं होति,जाणएण कात- वाणि । कहिं परिद्ववेयच्चाणि?, एगते अणावाए सह पत्रधएहि रयत्नाणेहि य, असति पडिलहणियाए दोरेण रहे वनति, उद्धहै। महाणि ठविज्जति, अति ठाणस्स तस्स पासल्लियं ठनि, जओ का आगमो जातो ततो पुप्फक करेंति । जदि एताए विधीए ॥१११॥ का विगिीचत कोइ गिपहेज्जा आगारी तथानि वोस अधिकरणा सुद्धा साधुणो, जेहि अण्णेहिं साहिं गहिताणि जदि कारणे गहिताण सुद्धाणि जायज्जीवाए परिशुज्जति, असुद्धाणि उप्पण्णे उप्पण्णे विगिनिजनि ।। नोउवकरणे चतुविधा- उच्चारे पामवणे Mar ANSAR .--- .
SR No.090463
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1986
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Story, & agam_aavashyak
File Size9 MB
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