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________________ भी गुमय सचिट्ठति, जमालीति समणे मग महावीरे जमालिं एवं वयासी-अत्यि पं जमालि' ममं बहवे अंतेवासी छउमत्था जे णं पर एतरजमालि वागरणं एवं वागरेत्तए जथा णं महं, नो चेवणं एतप्पगारं माम मासित्तए जथाणे तुम, सासए लोए जमाली, जंण कयायि राणासीन कदापि न भवनि न कदायि न मबिम्सनि, भुर्वि च भवति य मविस्सति य, धुवे जाव निचे, असासए लोए जमाली, आवश्यक जण उस्मप्पिण्णी मवित्ता ओसप्पिण्णी भवति, मामने जीवे जमाकी, जण कदापि णासी जाव जिच्चे, असासते जीवे, चूणा 15 जणं नेहए भविना निरिक्वजाणिए भवनि तिरिक्खजाणिए भवित्ता मणुस्से मवह२ मवित्ता देवे भवति, तते णं से जमाली उपोषात है सामिस्स एवं आइक्खमाणस्म एतम₹नो सहति, अमाईते सामिस्स अंतियाओ अक्कमति २ पहहिं अमन्माबुम्मावणााइ नियुक्ती मिच्छत्ताभिनिवेसहि य अप्पाणं च परं च तदुमयं च बुग्गाहेमाणे चुप्पाएमाणे पहुई वासाई सामण्णपरियाय पाउणति, बहुहिं ॥४१९॥ छठमादीहिं अप्पाणं भावति, मावेत्ता अद्भूमासियाए सलहणाए अप्पाणं सेति २ तीसं मत्ताई अणसणताए छेदेति, छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा लतए कप्पे तेरससागरोचमद्वितिकेसु देवेसु देवत्ताए उवषण्णे, एवं जथा पण्णत्तीए जाच अंतं काहितित्ति । एताए दिट्ठीए बहुए जीवा रता तेग बहुरतत्ति मणति, अहवा बहुसु समएम ४कजसिद्धि पहुच्च स्ता-सक्ता बहुरता इति । चोइस वासाणि तदा सामिणा उप्पडितस्स गाणस्स ताई सो पढमओ निहो | उप्पण्णोत्ति ।। ४१९॥ वितिओ सामिणा सोलमवासाई उप्पाडितस्स गाणस्स तो उप्पण्णो । तेण कालणं तेण समएणं रायगिहे गुणसिलए ला चेतिए वन नाम भगवती प्रायरिया चोद्दसपुल्ली समोसढा, तस्स सीसो तीसगुत्तो नाम, सो आतप्पवादपुल्चे इमं लावगं अजवाति 655 - -
SR No.090462
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1985
Total Pages617
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_aavashyak
File Size18 MB
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