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________________ 幸 - ( तस्स ) ते ( जोअणस्स उ ) योजननो (जो ) जे ( उचरिमो ) उपरनो ( कोसो ) एक कोश ( मधे ) छे, ( तक्स कोसरस ) ते कोशना ( कमाए ) छटा मागने विषे ( सिद्धाय श्रोगाहणा ) सिद्धोनी अवगाहना- स्थिति (भषे ) पर ३३३ धनुष्य ने ३० अंगुल प्रमाण सिद्धस्थान थे. ६२. सिद्धोनुं ज स्वरूप कहे थे. ―― तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगग्गम्मि पेइट्टिश्रा । भैव पवंचउम्मुक्का, सिद्धिं वैरगई गया ॥ ६३ ॥ अर्थ--( तत्थ ) त्यां एटले ते या भागमां (सिद्धि ) सिद्धि नामनी ( वरगई ) उत्तम गतिने (गया) पामेला अ ( महाभागा ) महाभागवंत एवा ( सिद्धा ) सिद्धो ( भवप्प उम्मुका ) नारकादिक संसारना प्रपंचथी - विस्तारथी मुक्त था सता ( लोगग्गम्मि ) लोकाग्रने विषे ( पइडिया ) स्थिर रहेला हो, अर्थात् हालवा चालवाना स्वभाव रहित - स्थिर रहेला वे. ६३. sa सिद्धोनी अवगाहना कहे . - सेहो जस्स जो होई, भवैमि चरिमम्मि अ । तिभागहीणा तत्तो अ, सिद्धाणोगीहणा मैवे ॥ ६४ ॥ अर्थ - (जस्स) जे सिद्धनो ( चरिमम्मि च ) पोताना बेल्ला ( भवम्मि ) भवने विषे ( जो ) जे ( उस्सेहो ) उत्सेध - उंचपणुं ( होइ ) दोय छे, ( ततो अ ) तेनाथी ( विभागहीणा ) त्रीजो भाग श्रोत्री ( सिद्धाय भोगाइया) ५८ 20-A
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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