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________________ (तत्थ ) ते उपर कहेला स्मशानादिकने विषे ( परमसंजए ) मोक्षने माटे संयमने धारण करनारा (मिक्खू ) साधु (पास) निवासने ( संकप्पए ) करे. उपरना श्लोकमा 'तेवा स्थानने विषे साधु नियासने पसंद करे.' एम को इतुं, वेथी कोइक मात्र रुचि ज करे पण रहे नहीं, तेटला माटे मा श्लोकमा रहेबानु कह्यु. ७.. अहीं कोई शंका करे के-" बीजाए पोताने माटे करेला स्थानमा साधुए रहेवार्नु पसंद कर." एम शा माटे कडं | ते उपर कहे छे..नै सेयं गिहाई कुविजा, नेव अग्नेहिं कारए । गिर्हकम्मसमारंभे, भूपाणं दिस्सए बेहो ॥ ८॥ अर्थ–साधु ( सयं ) पोते (गिहाई ! गृहादिक (न कविता करे नहीं, तथा (अमेहिं ) बीजा पासे गृहादिक । (नेव कारए) करावे नहीं, तथा उपलक्षणथी गृहादिक करता एवा अन्यने अनुमोदे नहीं. कारण के (गिहकम्मसमारंभे) गृहकार्यना प्रारंभमा एटले माटी, इंट विगेरे लाववा-करवामां (भूचाणं) अनेक प्राणीओनो (वहो ) वध (दिस्सए) देखाय छे, ८. कया प्राणीप्रोनो वध थाय छे ? ते कहे छे.तसाणं थावराणं च, सुहमाणं घायराण य । गिहकम्मसमारंभ, संजओ परिवजए ॥९॥ अर्थ-गृहादिकना प्रारंभ करवामा ( तसाणं ) प्रस, ( थावराणं च ) स्थावर, ( सुडमाणं ) सूक्ष्म भने (वायराण १ आ सूक्ष्म एकेंद्रिय न समजवा. केमके तेनी विराधना थइ शकती नथी.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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