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केटलुं अने केवी रीते बंधाय छे ? ते कहे छे.-( सच्चेसु वि पएसेसु) आत्माना सर्व प्रदेशोनी साथे ( सर्व ) सर्व एटले ज्ञानावरणादिकमाथी कोइ एक ज कर्म नहीं पण सर्व कर्म (७-८ कर्म ) (सम्वेस) सर्व एटले प्रकृति, स्थिति विगेरे सर्व प्रकारे ( बज्झर्ग) क्षीरनीरनी जेम बांधे थे-आश्लिष्ट करे छे. १८.
हवे काळ एटले कर्मनी स्थितिने कहे छे.उदहिसरिसनामाणं, तीसई कोडिकोडीओ। उनकोसिया ठिई होई, अंतीमुहत्तं जहम्मिश्रा ।। १६ ॥
अर्थ-( तीसई ) त्रीश ( कोडिकोडीओ) कोटाकोटि (उदहिसरिसनामाणं) उदधि सदृश नामवाळानी एटले सागरोपमनी ( उकासिया ठिई ) उत्कृष्ट स्थिति ( होई ) होय छे अन ( जहलिया ) जघन्य स्थिति (अंतोतं) | अंतर्मुहूतेनी छे. १६.
आटली स्थिति कया कया कर्मनी छ । ते कहे छे.| पावरणिजाण दुहं पि. वेणिज्जे तहेव य । अंतराए अकम्मम्मि, ठिई एसा विश्रोहिया ॥२०॥
___ अर्थ-(दुण्हं पि) बझे ( पावरणिजाण ) आवरणने विषे एटले झानावरणीय अने दर्शनावरणीयने विषे, II (वेअणिजे) वेदनीयने विषे, । तहेव य ) तेम ज ( अंतराए अ) अंतरायने विषे (कम्मम्मि) आ चार कर्मने विषे ।।
एटले ते चार कर्मनी ( एसा ) पा उपरनी गाथामां कहेली (ठिई ) स्थिति (विाहिश्रा ) कहेली छे. भहीं वेदनीय