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अर्थ- अहीं प्रदत्त वस्तु सुगंधी तेल, कस्तूरि, पुष्प विगेरे जाणवी. ५५
तण्हाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, गंधे अतित्तस्स परिग्गहे थ । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तस्थावि दुक्खा न विनुचई से ।। ५६ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थश्रो अ, पओगकाले अ दुही दुरते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, गंधे अतित्तो दुहिमो अणिस्लो ॥ ५७ ॥ गंधाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गंधम्मि गो पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराश्रो। पदुट्ठचित्तो अ चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५९ ॥ गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झेऽवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥३॥
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