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सद्दे अतित्ते अपरिग्गहे श्र, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि ।
अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले पाययई अदत्तं ॥ ४२ ।। अर्थ-ग्रहीं अदत्त ग्रहण करवान कहुं ते या प्रमाणे-सारु गीत गानारी दासी विगेरेने तथा सारा ध्वनिवाला वीणा * वासळी विगरे वाजिबने चोरी ले छे, इत्यादि समजवु. ४२,
तण्हाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ४३ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थमओ अ, पओगकाले अदुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, सद्दे अतित्तों दुहिओ अणिस्सो ॥ ४४ ॥ सदागुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोकभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥ ४५ ॥ एमेव सहम्मि गयो पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्धचित्तो अचिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ४६॥