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________________ (वडाइ ) वृद्धि पामे छे. अर्थात् लोभी माणस परधनने ग्रहण करे के अने पछी तेने गोपववा माटे मायामृषा बोले छे, तेथी करीने लोभ ज सर्व श्राश्रवोर्नु मूळ कारण छ एम सिद्ध थयु. अहीं रागनो प्रस्ताव अतां पण जे लोभनो विषय को al ते रागमा पण लोभरूप अंशनुं अतिदुरपणं जणाववा मारे कहेल छे. अहीं कोई शंका करे के मायामृषा बोलवामा शो |' | दोष? ते उपर कहे .-(सत्थावि) तेमां पण एटले मृषा भाषणथी पण (से) ते माणस ( दुक्खा ) दुःखथी (न विमुदई ) मुक्त थतो नी-दुःखी ज थाय छे. ३०. मृषा भाषण करवाथी शी रीते दुःखी थाय छे ? ते कहे छे.-- मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ भ, पनोगकाले श्र दुही दुरते । __ एवं अदत्ताणि समाययंतो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ३१ ॥ अर्थ-( मोसस्स) मृषा वचननी ( पच्छा य) पछी एटले मृषावचन बोल्या पछी तथा (पुरत्वो अ) पहेला तथा ( पमोगकाले श्र) प्रयोगने वखते एटले मृषा बोलती वखते (दुही ) दुःखी सतो एटले मृषावाद बोल्या पछी " में बराबर युक्ति पूर्वक वचन कहां छे के नहीं ? कोइने तेनी खबर पडशे तो शुं थशे ?" इत्यादि विचार थवाथी दुःखी थाय छे, तथा मृषावाद बोन्या पहेला " श्रा वस्तुना स्वामीने मारे कइ रीते छेतरवो ?" इत्यादि चिंता थवाथी दुःखी थाय | छ, तथा मृषावाद बोलती बखते "मारा अमत्य वचनने आ जाणी जशे के केम ? " इत्यादि चिंताथी दुःखी थाय छे. श्रा नामदार
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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