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ण वा लभिजी निउण सहाय, गुणाहिअंवा गुणओ समंवा ।
एकोऽवि पाँवाइँ विवजयंतो, विहरिज कोमेसु असजमाणो ॥५॥ अर्थ-(वा) जो कदाच (गुणाहिमं वा) पोताची अधिक गुणवान अथवा (गुणो समं वा) गुणे करीने पो. तानी समान एटले समान गुणात्राको (निउ ) निपुण (सहायं सहाय-शिष्य (ण लभिआ)न पामे तो ( एकोवि) पोते एकलो पख (पावाई) पापने एटले पापना हेतुभूत अशुभ मनुष्ठानने (विवजयंती ) वर्जतो थको तथा (कामेसु) इंद्रियोना विषयोने विषे ( असञ्जमाणो) आसक्ति रहित थयों थको (विधरित ) प. प.
मा प्रमाणे दुःखना नाशनो उपाय ज्ञानादिक ले ते प्रसंग सहित कयु. हवे ज्ञानादिकनो प्रतिबंध करनार भने दुःखना हेतुरूप जे मोहादिक के तेनी जे प्रमाणे उत्पत्ति थाय छे, जे प्रकारे ते दुःखना हेतुरूप छ, जे प्रकारे तेनो चय | थाय छे अने जे प्रकारे तेना क्षयथी दुःखनो क्षय थाय थे, ते कहे छे.
जहा य अंडप्पभवा बैलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य ।
एमेव मोहाययणं खु तण्डा, 'मोहं च सहाययणं वयंति ॥ ६ ॥ अर्थ-(जहा य) जेम ( अंडप्पभवा ) हंसायी उत्पन थयेली (बलागा) पगली-पक्षिणी होय के, ( जहा य) अने जेम (बलागप्पभवं ) बगलीथी उत्पन्न थयेल ( अंडं ) इंड्ट होय छ, ( एमेव ) एज रीते (खु) निधे (मोहायपणं)