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________________ नामनी चोधी सामाचारी कही छे ४, भिक्षाटन करीने साधुए पेटभरू न थर्बु जोइए, परंतु बीजा निनोने पण निमंत्रण करवारूप छंदना करवी नोइए तेथी पांचमी छंदना सामाचारी कही छे ५, तेमां पण इच्छाकार-आपनी इच्छापूर्वक पधारो-एम कहेवू जोइए, तेथी इच्छाकार नामनी छठी सामाचारी कही छे , आ प्रमाणे कर्या छतां पण कदाच कथंचित् ।। कोई कार्यमा अतिचार थइ जाय तो तेनु मिथ्यादुष्कृत आप जाइए तेथी सातमी मिथ्याकार नामनी सामाचारी कही के ७, गुरुनी पासे भोटो अपराध आलोचे सते गुरुनु वचन ' तथा-वहत्ति-बहु सारं' एम कहीने स्वीकारवानुं छे तेथी ठिमी तथाकार नामनी सामाचारी छे ८, तहत्ति कहीने गुरुन वचन स्वीकार्या पछी पोताने योग्य सर्व कार्यमांउद्यम करयो जोइए तेथी नवमी अभ्युत्थान नामनी सामाचारी कही छे है, तथा तेवा उद्यमवाळाए ज्ञानादिक | मेळनवा माटे बीजा गच्छमां जाने पण उपसंपदा ग्रहण करवी जोइए तेथी दशमी उपसंपदा नामनी सामाचारी | कही छे. १०,२-३-४. ____ हवे कड़ कइ सामाचारी कये कये ठेकाणे करवी ? ते कहे छे.| गेमणे आवस्सिअंकुजा, ठाणे कुजा णिसीहि। आपुच्छणा सयकरणे, परकरणे पडिधुच्छणा ॥५॥ अर्थ ( गमणे ) गमन करती यसते (आपस्सिनं ) श्रावश्यकी एटलं अवश्य करवा लायक कार्य संबंधी पहेली | सामाचारी (कुजा) करची १, तथा (ठाणे) उपाश्रयादिक स्थानमा प्रवेश करती. वखते ( णिसीहिरं ) गमनादिकना
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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