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________________ | अन्भूटाणं नवमं ९, दसमा उवसंपया १० । एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेदना ॥४॥ अर्थ (पढमा ) पहेली ( भावस्सिा नाम ) आवश्यकी नामनी सामाचारी छे, ( बिइमा य) अने बीजी | (निसीहिया ) नैषेधिकी छे, ( भापुच्छणा य) तथा प्रापृच्छना ( तहमा ) श्रीजी छ, ( चउत्थी ) चोथी (पडिपुच्छणा) : | प्रतिपृच्छना छे, (पंचमी ) पांचमी (छंदणा नाम ) छंदना नामनी छ, ( इच्छाकारो भ) तथा इच्छाकार ए (छट्टभो ) | छही के, ( सत्तमो) सातमी (मिच्छकारो उ) मिथ्याकार के ( तहकारो उ) तथाकार ए (भट्ठमो) आठमी छे, (भभुट्टा ) अभ्युत्थान ए (नवमं ) नवमी छे, ( दसमा) अने दशमी ( उवसंपया) उपसंपदा छे. (एसा) मा (दसंगा) यश मवाळी-दस प्रकावली (शाहू ) साधुधोनी (सामायारी) सामाचारी (पवेइमा) कहेली के. भावार्थ-श्री जिनेश्वरोए साधुनी दश सामाचारी आ प्रमाणे कही थे. चारित्र लीधा पछी कारण बिना गुरुना अवग्रहमा भाशातनानी शंकाने लीधे रहेवू नहीं, परंतु तेमना भवग्रहथी बहार रहे-नीकळवं, अने ते निर्गमन आवश्यकी कर्या विना था शकतुं नथी तेथी आवश्यकी ए पहेली सामाचारी के १, निर्गमन कर्या पछी पोताना स्थानमा रहेवार्नु छ माटे गमनादिकना निषेधरूप नैषेषिकी करवी ए बीजी सामाचारी के २, पोताने स्थाने रहेला साधुने मिचाटनादिक कार्यनी प्राप्ति थाय त्यारे गुरुने पूछीनेज अवतजोहए, तेथी श्रीजी आपृच्छना नामनी सामाघारी के ३, गुरुए जवानी रजा आप्या छतां चालती वखते फरीथी गुरुने पूछवानुं के वेथी प्रतिपृच्छना
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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