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________________ (अमोगी ) भाग रहित माणस (विपमुचई ) कमेथा मूकाय छे. ४१. ____ भोगीने कर्मलेप थाय छे अने अभोगीने लेप थतो नथी, ते उपर दृष्टांन कहे छ. उल्लो सुको अ दो बूंढा, गोलेया महिओमया। दो वि वडिआ कुड्डे, जो उल्लो सोऽथ लैंग्गइ ४२ ।। " अर्थ-( उल्लो) आर्द्र-लीलो ( सुक्को अ ) अने सुको (दोये ( मट्टिामया ) माटीना ( गोलया ) गोळा कोइ || भीतपर (छूढा)-फया, ते (दो वि ) बने गोळा ( कुछ ) भींत उपर ( आवाडिमा) पध्या, ( अत्थ ) तेमां-ते बनेमा Ma(जो उल्लो ) जे आर्द्र गोळो होय ( सो ) ते भींत साथे ( लग्गह) लागे छे-छोटी जाय छे. ४२. ___ हवे दाष्टांतिक कहे छे.। एवं लग्गति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा। विरती उ नै लग्गति, जहा सुके उ गोलए ॥१३॥ अर्थ ( एवं ) एज प्रमाणे एटले आर्द्र गोळानी जेम (दुम्मेहा ) दुर्बुद्भिवाळा (जे नरा ) जे मनुष्यो (कामला। लसा ) कामने विषे लालसावाला थाय जे तेओ । लमगति ) संसारमा आसक्त थाय के, चोंटी जाय छे (उ) परंतु (जहा ) जेम (सुके 3) सुको (मोलए ) गोळो भींत साथे लागतो नथी-चोंटी जतो नी तेम (विरत्ता) कामभोगी विरक्त थयेला पुरुषो ( न लग्गति ) संसारने विषे आसक्त थता नथी. ४३. आ प्रमाणे जयघोष मुनिए कहुं त्यारे विजयघोष माझणे शुं कर्यु ? ते कहे छ. ।
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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