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________________ **-*¥*••*@*«→→**←→»*•¥0_? नत्र मुंडण समंणो ने ओंकारण बर्मणो । ने मुंगी वणवासेणं, कुंसवीरेण नै तासो ॥३१॥ अर्थ -- (मुंडिए) मात्र मुंडनवडे के लोचवडे ज ( समयो ) साधु ( न वि ) का नहीं, ( ओंकारेण ) कारादिक गायत्री मंत्री ज () बाल कहानी (मात्रा) अरण्यमां वसवा मात्रश्री ज ( मुखी न ) मुनि कहेवाय नहीं. तथा ( कुसचीरेण ) दर्भमय वस्त्रवडे ज ( तात्रसो न ) तापस कहेवाय नहीं. ३१. त्यारे ते शी रीते कद्देवाय ? ते कहे छे. -- समयाए समणो होइ, बंभचेरेण वंभणो । नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो || ३२ ॥ अर्थ--( समयाए ) शत्रु तथा मित्रपर समानपणाए करीने ( समयों ) श्रमण - साधु (होइ ) होय छेकदेवाय से, (बंभचेरेण ) ब्रह्मचर्यवंड करीने ( भयो ) ब्राह्मण कहेवाय छ, ( नाणेण य ) तथा ज्ञाने करीने ( मुणी होइ ) मुनि होय छे, तथा ( तवेणुं ) तपबड़े करीने ( होइ तावसो) तापस होय छे- कहेवाय के. ३२. कम्मुणा भणो होइ, कैम्मुखा होइ वत्तिओ । कम्मुणा वहलो होइ, सुहो हेंवइ कंम्मुला ॥ ३३ ॥ अर्थ-( कम्पुणा ) क्षमा, दान, दम विगेरे कर्मवडे ज ( बंभणो ) ब्राह्मण (दोइ ) होय छे, ( कम्मुखा ) चत थकी रक्षण करवारूप कर्मे करीने ज ( खत्तियां ) क्षत्रिय ( दोह ) होय थे, ( कम्मुखा ) खेती, पशुपाळ विगेरेना कर्मवडे ज ( वसो ) वैश्य ( होइ ) होय छे, तथा (कम्मुखा ) चाकरी करवारूप कर्मवडे ज ( सुद्दो ) शूद्र (हवह ) होय . आ
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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