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श्री उत्तराध्ययनसूत्र नाषांतर.
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विभाग पीजो.
अथ ब्रह्मचर्यगुप्ति नामर्नु सोळमुं अध्ययन. १६. पंदरमा अध्ययनमा साधुना गुणो कह्या. ते गुणो तो जे ब्रह्मचर्यमा स्थिर होय तेने ज तत्वथी संभवे छे भने ब्रह्म| चर्य पण ब्रह्मगुप्तिने जाणवाथी ज पाळी शकाय छे. तेथी पा अध्ययनमा ते ब्रह्मगुप्तिमोर्नु ज स्वरूप कहे छे. ए संबंधी | आवेला मा अध्ययन- प्रथम सूत्र ा प्रमाणे
सुअं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं, इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिट्ठाणा पासत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुर्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरिजा ॥१॥