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पार्श्वनाथनो आश्रय करो, तेमनी पासे तमारा अपराधनी क्षमा मागो भने तेमनी आज्ञा अंगीकार करो. जो भालोक अने परलोक संबंधी सुखनी इच्छा होय तो तमारे मा कार्य कर उचित छ." आयु मंत्रीजें वचन सांभळी यवनराजा बोल्यो । के-" हे मंत्री ! मे मने ठीक बोध कर्यो." एम कही पोताना कंठपर परशु राखी परिवार सहित ते यवनराजा श्रीपाच- | प्रभु पास गयो, त्यां प्रतिहार द्वारा रजा लइ सभामां जइ प्रभुने नमस्कार कर्या. प्रभुए तेना कंठपरथी कुठार मुकावी दीघो, त्यारे फरीथी नमस्कार करी यवन राजा बोल्यो के-" हे नाथ : तमे सर्वने सहन करनार छो, तेथी मारो भा अपराध क्षमा करो, मने गा मालाने आमदान मागो गो माराणा प्रान्न थइ मारी लक्ष्मीने ग्रहण करो." श्रीपाश्वनाथे कयु के-" हे कुशळ राजा ! तमारु कल्याण थायो, तमा राज्य तमे भोगवो, भय पामशो नहीं अने फरीथी आयु कार्य करशो नहीं."
श्रा प्रमाणे भगवानना वचननो तेणे अंगीकार कर्यो, एटले जिनेश्वरे तेनुं बहुमान कयु. ते वखते तरत ज कुशस्थळ पुरनो | रोध दूर थयो. पछी प्रभुनी प्राज्ञाथी ते पुरुषोत्तमे पुरमा जइ प्रसेनजित् राजाने ते वार्ता कही प्रसब कर्यो.
त्यारपछी भेटनी जेम प्रभावती फन्याने साथे लइ प्रसेनजित राजा प्रभु पासे श्राव्या. अने तेमने विज्ञप्ति करी के" हे जगत्पति ! जेम तमे वहीं भावीने मारापर अनुग्रह कयों तेम आ मारी पुत्रीतुं पाणिग्रहण करी मारापर अनुग्रह करो. पा मारी पुत्री तमारापर चिरकाळधी रागवाळी छे. ते बीजा वरने इच्छती नथी, वळी स्वभावी ज तमे कृपालु छो माटे | श्रानापर विशेष कृपादान थानो." ते सांभळी स्वामी बोन्या के-“हे राजा! ९ मारा पितानी आन्नाथी तमारं रक्षण करवा श्राव्यो छु, पण तमारी पुत्रीने परणवा भान्यो नथी, तेथी आ वार्ता फरी करशो नहीं." ते सांभळी प्रसेनजिते