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________________ . . . पोतानी प्रियामाने ते कार्य माटे श्राझा करी. ते वखते विश्वमा जनोने उत्सवना कारणरूप वसंतोत्सव पण प्रवर्ततो हतो, I तेथी सत्यभामा विगेरे स्वीओ उद्यानमा क्रीडा करवा गइ, तमनी साथे विष्णुना आग्रहथी श्रीनेमिनाथ पण कामविकार रहित ज ते स्त्रीओनी साथे ऋतुने उचित एवी क्रीडाबडे रमवा लाग्या. वसंतऋतु पीत्या पछी ग्रीष्मऋतु आव्यो. त्यारे पण वासुदेवना आग्रहथी भगवान तेनी प्रियाओनी साथे क्रीडापर्वत उपर क्रीडा करवा लाम्या. त्या विश्वना अलंकाररूप | निर्विकार जगद्गुरु श्रीनेमिनाथ कृष्णना आग्रहथी जळकोडादिक काडा करवा लाग्या. पछी एकदा वासुदेवनी प्रियाए | | अवसर जोइ प्रीति, नम्रता अने हास्य सहित नेमिकुमारने कयु के-" हे दियर ! तमारूं रूप इंद्रथी पण अधिक छ, तमारु शरीर सदा आरोग्य अने सौभाग्यादिक गुणे करीने युक्त छे, अने आ तमारी युवावस्था इंद्राणीने पण कामातुर बनाये तेवी छ, तो योग्य कन्याने परणीने ते सर्व सफळ करो. मा तमारु रूपादिक सर्वे भोग विना भवकेशि वृक्षनी जेम निष्फळ के. केमके स्त्री विना भोग शा कामना ? स्त्री ज भोगनुं स्थान थे, स्त्री विना स्नानादिक शरीरनी शुश्रूषा थती नथी, खी til रहित एवा पृरुपने निर्धननी जेम मनवांछित भोजन क्याथी मळे १ जेम खाण विना रत्न न होय तेम स्त्री बिना पुत्र पण होता नथी. भिचुकना धननी जेम स्त्री रहितना अभने अतिथि पण खातो नथी. युवति विना युवाननी रात्रि पण शी रीते जाय ! जुओ, चक्रवाकनी रात्रि चक्रवाकी विना वर्ष जेवडी थाय छे. योग्य स्त्रीना संयोग विना कोइपण पुरुष शोभतो * नथी. जुभो, रात्रि विनाना चंद्रने कांति क्याथी होय ? तेथी हे गुणसागर ! कोइयण कन्यानुं पाणिग्रहण करी दशार्हादिक सर्व यादवोनुं मनवांछित पूर्ण करो. जन्मी ज प्रारंभीने स्वच्छंदपणे फरनारा सढि जेम गाडीनी सुंसरी बहन न करी TRACK
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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